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ब्लेज़ पास्कल

1623 - 1662 | पेरिस

ब्लेज़ पास्कल की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 2

बल रहित न्याय असमर्थ है, न्यायरहित बल अत्याचार है।

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हम केवल झूठ, धोखेबाज़ी और अंतविरोध हैं। हम स्वयं को स्वयं से छिपाते भी हैं और छल-कपट भी करते हैं।

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