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प्रतिष्ठित कहानीकार। तद्भव पत्रिका के संपादक।

प्रतिष्ठित कहानीकार। तद्भव पत्रिका के संपादक।

अखिलेश का परिचय

यशस्वी कथाकार-संपादक अखिलेश का जन्म 6 जून 1960 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर के मलिकपुर नोनरा गाँव में हुआ। ‘‘मुझमें कम उम्र में साहित्य पढ़ने, लेखक बनने का शौक़ पैदा हो गया था... एक समय भविष्य में जगदीशचंद्र बसु अथवा हरगोविंद खुराना बनने का सपना देखने वाला विज्ञान का विद्यार्थी इंटर की बोर्ड परीक्षाओं में भागते भूत की लंगोटी के रूप में किसी भाँति थर्ड डिवीज़न में पास हुआ। उक्त अपमानजनक श्रेणी पाने से मुझमें दो प्रतिक्रियाएँ हुईं : पहली यह कि भगवान से भरोसा उठ गया और मैं नास्तिक हो गया; दूसरी, विज्ञान का रणछोड़दास, मैं स्नातक में कला संकाय का छात्र बना।’’ आगे उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम.ए. किया और सक्रिय लेखक-संपादक के रूप में अपने कार्यजीवन का आरंभ किया।   

 

अखिलेश ने हिंदी कहानी को एक नई तरतीब दी और पठनीयता की तमाम शर्तों को पूरा करते हुए उसे इस क़ाबिल बनाया है कि वह यथार्थ को अधिक निर्मम निगाह से देख सके। उनका कथाकार संसार की वास्तविकता को देखने के लिए अपने टेलिस्कोप और माइक्रोस्कोप उस बिंदु पर स्थित करता है जहाँ से हमारे वक़्त की पीठ का नंगापन हर हाल में ज़्यादा तीखा दिखाई देता है। ग़लत की भव्यता से अखिलेश की चिढ़ और सही की निरीहता के प्रति उनकी पक्षधरता उनके विवरणों तक में चयनात्मक भूमिका निभाती है जिसके चलते कहानी पूरी होने से पहले भी हमें कई बार अपना पक्ष चुनने के बारे में चेताती चलती है। वह यह भी सावधानी बरतते हैं कि हम बाहरी विवरणों के तमाशबीन भर होकर न रह जाएँ, और इसके लिए उनका कथाकार संत्रास के कुछ अमूर्त स्ट्रोक अनायास ही पाठक के अवचेतन तक पहुँचा देता है, जो तब ज़्यादा टीसते हैं जब हम पाठक की भूमिका से निकलकर वापस नागरिक-सामाजिक होने जाते हैं। ‘शापग्रस्त’ और ‘चिट्ठी’ जैसी उनकी कहानियों ने हिंदी कहानी की फ़ार्मूलाबद्धता को उस समय भंग किया जब वह वैचारिक एक रैखिकता की झोंक में अपने आसपास फैले यथार्थ की बहुत सारी जटिलताओं को छोड़ती चल रही थी। तेज़ी से बदलने के लिए अकुलाते समाज के अधिकतम को पकड़ने के लिए जिस तरह की निगाह और भाषा-भंगिमा की ज़रूरत थी, अखिलेश ने उसे लगभग सबसे पहले संभव किया। सत्ता और शक्ति की विभिन्न संरचनाओं को लगातार निर्मित और पोषित करने के अभ्यस्त हमारे मन-मस्त‌िष्क को अखिलेश ने अपनी विखंडनात्मक त्वरा से देखने का एक नया संस्कार दिया है। अखिलेश का कथाकार न सिर्फ़ मौजूदा यथार्थ को देखने में सफ़ल रहा है बल्कि उसके आगामी तेवरों का संकेत भी दे पाया है।

 

वह श्रीकांत वर्मा सम्मान, इंदु शर्मा कथा सम्मान, परिमल सम्मान सहित विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किए गए हैं। देश के महत्त्वपूर्ण निर्देशकों द्वारा कई कहानियों का मंचन एवं नाट्य-रूपांतरण किया गया है। कुछ कहानियों का दूरदर्शन हेतु फ़िल्मांकन। टेलीविज़न के लिए पटकथा एवं संवाद-लेखन भी किया है। ‘शापग्रस्त’ कहानी पर फ़ीचर फ़िल्म का निर्माण। अनेक भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में रचनाओं के अनुवाद प्रकाशित हुए हैं।

 

प्रमुख कृतियाँ

 

कहानी-संग्रह : आदमी नहीं टूटता, मुक्ति, शापग्रस्त, अँधेरा, संपूर्ण कहानियाँ।

 

उपन्यास : अन्वेषण, निर्वासन।

 

सृजनात्मक गद्य : वह जो यथार्थ था।

 

आलोचना : श्रीलाल शुक्ल की दुनिया।

 

संपादन : वर्तमान साहित्य, अतएव पत्रिकाओं में समय-समय पर संपादन। आजकल प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘तद्भव’ के संपादक। ‘एक कहानी एक किताब’ शृंखला की दस पुस्तकों के शृंखला संपादक, ‘दस बेमिसाल प्रेम कहानियाँ’ का संपादन, ‘कहानियाँ रिश्तों की’ शृंखला की ग्यारह पुस्तकों के शृंखला संपादक। 

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