छायावाद की चालढाल
जिन दिनों छायावाद का आंदोलन चला था उन दिनों इस काव्यधारा की रेखाएँ वट-वृक्ष की जड़ों की तरह उलझी हुई थीं, तर्कनाल की तरह बिखरी हुई थीं। दूसरी बात यह है कि छायावाद को संपूर्ण रूप में देखना उस समय संभव भी न था। उस समय छायावादी काव्य अपने निर्माण की प्रक्रिया