ज्ञानरंजन की कहानियाँ
फ़ेन्स के इधर और उधर
हमारे पड़ोस में अब मुखर्जी नहीं रहता। उसका तबादला हो गया हैं। अब जो नए आए हैं, हमसे कोई वास्ता नहीं रखते। वे लोग पंजाबी लगते हैं या शायद पंजाबी न भी हों। कुछ समझ नहीं आता उनके बारे में। जब से वे आए हैं उनके बारे में जानने की अजीब झुंझलाहट हो गई हैं।