इति
मौत को लेकर हम आतंकित थे कि जब वह् आदमी मरेगा तो यह सारी झंझट होगी कि क्या कहाँ कैसे कब। टुकड़े अस्त व्यस्त बिखरे। मौत के सारे अनजानपन को देखते हुए। उनके सारे टूटे फूटेपन को देखते हुए। उनके,हमारे बाप के। और यह भी उलझा मसला कि कौन कहेगा, किससे, कैसे,