बौद्ध भिक्षुओं के निवास

bauddh bhikshuon ke niwas

रामशरण विद्यार्थी

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बौद्ध भिक्षुओं के निवास

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और अधिकरामशरण विद्यार्थी

    गुफाएँ या बौद्ध मठ

    तिब्बत में बौद्ध मठ को गुफा कहते हैं जिसके अर्थ एकांत स्थान के हैं। इनमें बौद्ध भिक्षुक और भिक्षुणियाँ रहती हैं। प्रत्येक बौद्ध मठ में एक मठाधीश लामागुरु होता है जो दलाई लामा द्वारा ल्हाशा से भेजा जाता है। यह लामा गुरु मठ का सर्वाधिकारी होता है और इसकी आशा सर्वमान्य होती है। ग्रामीण लोग सब सेवा का कार्य करते हैं तथा भोजन आदि आवश्यक सामग्री भी भेंट करते हैं। प्रामीण स्त्री पुरुष सभी सेवा कार्य करते हैं। यह स्थान गंदगी और अंधकार के भंडार है। इन में बुद्ध, राम-सीता और मठ के संस्थापक दलाई लामा आदि की प्रतिमाएँ रहती हैं। इनके अतिरिक्त बहुत से दैत्य और दानवों की बृहत् मूर्तियाँ भी स्थापित की हुई हैं। इन में मुख्य पूजनीय देव मूर्तियों के सम्मुख घी के दीपक सदैव एक पंक्ति में जलते रहते हैं। यात्री लोग भी पूजन अर्चन में घृत-दीपक जला कर आरती उतारते हैं। इनके पीछे स्वर्ण और रजत के सुंदर पात्रों में केसर रंजित जल भरा हुआ रखा रहता है। यात्री लोग प्राय: तिब्बती सिक्का तनख़ा और अर्द्ध तनख़ा चढ़ाते हैं।

    इन मठों में पाली भाषा का एक छोटा सा पुस्तकालय भी होता है जिसमें पुस्तकें खुली हुई अल्मारी में लगी रहती हैं, जो प्रायः एक फुट चौड़ी और डेढ़ दो फीट लंबी होती हैं। इनका प्रत्येक पत्र अलग-अलग होता है। इन पर लेख पाली लिपि में बड़े सुंदर हस्तलिखित अक्षरों में होते हैं। इनका काराज हाथ का बना हुआ और मोटा होता है। इनकी रक्षा के लिए काष्ठ के पतले चपटे तख़्ते ऊपर नीचे लगे रहते हैं। यह सब धार्मिक ग्रंथ हैं। मठाधीश तथा अन्य मठवासी इन पुस्तकों का प्रायः स्वाध्याय करते हैं।

    भिक्षु और भिक्षुणियाँ ब्रह्मचर्य व्रत का पूर्णतया पालन करते हैं। नव-आगंतुक आठ वर्ष की आयु पर्यंत चुंगचुग कहलाते हैं। तदुपरांत परीक्षा उत्तीर्ण हो जाने पर वह डवस कहलाते हैं। भिक्षा वृत्ति इनका स्वाभाविक कर्म है। कोई भी यात्री जो मठ में जाता है उससे लौटते समय यह भिक्षा माँगते हैं। सुधा निवारण के लिए भोजन याचना इनकी मुख्य माँग रहती है। यह झूठा और बचा हुआ भोजन भी सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। यह लोग माँस आदि पर जीवन निर्वाह करते हैं परंतु अपने हाथ से पशु बध नहीं करते। इनकी दशा सब प्रकार दीन हीन है। इनके बल आदि भी अत्यंत मैले कुचले होते हैं।

    यह लोग भोजन के पूर्व और पश्चात् सम्मिलित प्रार्थनायें करते हैं। ढोल दुन्दुभी श्रादि वाद्य प्रत्येक मठ में प्रार्थना के साथ बड़े ही मधुर स्वर में बजाए जाते हैं। इनके पास प्राय: तलवार, बरची आदि अनेक अस्त्र शस्लों का अच्छा संग्रह रहता है। भिक्षु लोग और अन्य धार्मिक वृत्ति के मनुष्य प्राय: एक पीतल का गोलाकार चक्र हाथ में रखते हैं जिसको वह हर समय घुमाते रहते हैं। इस चक्र पर पवित्र जप मंत्र, ओ३म् मणि पदमहुँ अंकित रहता है।

    इस चक्र के घुमाने का तात्पर्य इस पवित्र मंत्र का जप करना होता है। कैलाश और मानसरोवर के चारों ओर के सभी मठ प्रायः एक समान हैं। लगभग 6 मठ मानसरोवर के चारों ओर हैं जिनमें से गुसल और जीजू गुम्फा में हम लोग भी गए। हमने कैलाश के चारों ओर 6 प्रसिद्ध गुम्फाएँ देखी। अर्थात् धारचीन, जगड़ा, शिरलुग, छुकुरीमवीर्ची, जिडंफू और झंडफ़ू। इनमें कुछ कुछ विशेषता एक दूसरे से रहती ही है। जैसे छुकुरीमवीर्ची गुम्फा में मठ की प्रधान प्रतिमा के सन्मुख बहुत विशाल गजदंत का जोड़ा रखा हुआ है, और मठ के ऊपर सुंदर स्वर्ण कलश सुशोभित है।

    उपरोक्त सब ही गुफाओं में तकलाकोट की गुफा जो शिवलिंग नाम से प्रख्यात है, सबसे बड़ी और श्रेष्ठ है। इसमें तीन सौ के लगभग भिक्ष और भिक्षणियों के रहने का प्रबंध है। जिस समय हम इसमें पहुँचे तो लगभग 50 भिक्षुणी तथा 100 भिक्षुक थे। इन सबका अधिपति लामा गुरु और मठाधीश ल्हाशा से आता है। प्रायः लामा गुरु वृद्ध और अनुभवी विद्वान ही दृष्टिगत हुए। इनकी बाह्य आकृति से ही इनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है। इनकी आज्ञा का पूर्णरूप से पालन किया जाता है। यह अपने मठवासी लोगों को उनके अपराध पर दंड भी देते हैं। मठों में व्यभिचारी को कठिन दंड दिया जाता है। यह मठ सुशासित और सुसंगठित है। मठ का भवन बहुत विशाल और बड़ा आकर्षक है। इसके ऊपर सुंदर स्वर्ण कलश इसकी शोभा को बहुत बढ़ा देता है। इसके विशाल द्वार बहुत सुंदर और कलाकौशल के परिचायक हैं। प्रवेश द्वार से घुसते ही चौड़ी सी गली को जाना पड़ता है। जिसके दोनों ओर बड़े बड़े अनेकों चक्र लगे हैं। जिन पर बौद्ध पवित्र मंत्र अंकित है। जिन्हें यात्री लोग प्रायः घुमाते हैं। यह क्रिया भारत के मंदिरों में घंटी बजाने के समान ही है। यह मठ दो मंज़िला है। इसमें चारों ओर भिन्न भिन्न उपयोग के लिए आवश्यक भवन बने हैं और मध्य में एक विशाल तथा सर्वोच्च भवन है जिसमें चारों ओर दीवारों पर अन्य प्रकार के सुंदर सुंदर चित्र कपड़ों पर बनाकर लटकाए हुए हैं तथा दीवारों पर चित्रित किए हुए हैं। प्रायः यह चित्र बुद्ध के जीवन की घटनाओं का प्रदर्शन करते हैं। इन्हीं के सहारे-सहारे अनेकों देव दैत्य और दानवों की विशाल मूर्तियाँ स्थापित हैं। सबसे अंदर की ओर मुख्यतः बुद्ध की एक बड़ी तेजमयी पीतल की प्रतिमा है। सब गुफाओं के समान यहाँ पर भी अंधकार का अखंड साम्राज्य है। अनेकों धृत दीपक निरंतर जलते रहते हुए भी हमारे लिए टोर्च का जलाना अनिवार्य हो गया।

    सबसे अंतिम गुफा जो हमने इस यात्रा में देखी वह तकलाकोट से 6 मील की दूरी पर खोजरनाथ की है। इसका मार्ग प्रायः निर्मित और समतल है। इस मार्ग में नदियों पर पुल प्राय: अपवाद स्वरूप ही मिल सके। भार्ग में कतिपय हरे भरे और समृद्धि शाली ग्राम हैं। खोजरनाथ गुफा, वेग से बहती हुई काली नदी के तट पर स्थित है। इस मठ में कई विशाल राजमहल समान सुंदर भवन हैं। एक भवन के मध्य में राम सीता और लक्ष्मण की प्रतिमाएँ हैं। इसके पश्चात् सप्त ऋषि और तदनन्तर अनेकों ही बृहत् काय दैत्य और दानवों की विशाल प्रतिमाएँ स्थापित है। चित्र, चित्रकारी, दीपक, वाद्य आदि अन्य गुफाओं के समान ही इसमें भी विद्यमान हैं। इस विशाल भवन के अंदर छोटे छोटे और भी कई गृह निर्मित हैं जिनमें देवी और देवताओं की प्रतिमाएँ पूजित हैं। दूसरे भवन में बहुत विशाल राजसभा भवन समान पूज्य गृह हैं जिसके मध्य में पूज्य आराध्यदेव की मूर्ति स्थित है। इसके सन्मुख दो पंक्तियों में एक दूसरे के सामने बैठ कर जप पूजा तथा भोजन करते हैं। भोजन के पूर्व और पश्चात एक ही स्वर में नित्य ही कुछ मंत्रों का जप करते हैं। उस समय ढोल श्रादि भी बजाते हैं। भोजन प्रायः चाय सत्तू और माँस का ही होता है। चाय तो दिन में कई बार यह लोग पीते हैं। परंतु सब लोग भोजन एक साथ ही बैठ कर करते हैं। इस मठ में भी धीमी धृत दीपकों की ज्योति ही धार्मिक प्रकाश प्रसारित करती है परंतु यह प्रकाश अंधकार को तनिक भी मंद नहीं कर पाता। इसी विशाल भवन के ऊपर की मंज़िल में एक बड़ा पुस्तकालय है। जहाँ पर लामा या भिक्षु लोग स्वाध्याय करते हैं यह पुस्तकालय हमारी यात्रा में सबसे अधिक पूर्ण और महत्व का रहा। यहाँ के मठवासी भली प्रकार सुसंगठित और भली प्रकार देशाटन किए हुए हैं। इनमें कुछ लोग हिंदी भी जानते हैं और भारत के अनेको मुख्य मुख्य नगरों में हो आए हैं। इस मठ का कला कौशल कई संस्कृतियों का सुंदर सम्मिश्रण है। भारतीय बुद्धकालीन तथा नेपाली कला का तो स्पष्ट प्रदर्शन होता ही है। यहाँ की प्रतिमाएँ सब ही नेपाल निर्मित कही जाती हैं।

    तिब्बत को मठों अर्थात गुफाओं का देश कहना अत्युक्ति होगा। तिब्बत का वर्णन प्राय: यहाँ की गुफाओं का चित्रण मात्र ही है। कारण, यहाँ के लोगों का जीवन और आचरण इन मठों द्वारा ही नियमित और संचालित होता है। इनके धार्मिक रहस्य का जो इनके जीवन का सार और आधार है यह मठ ही प्रदर्शन, पालन और रक्षण करते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कैलाश पथ पर (पृष्ठ 111)
    • रचनाकार : रामशरण विद्यार्थी
    • प्रकाशन : शारदा मंदिर लिमिटेड
    • संस्करण : 1937

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