सीमातीत है। इसका अर्थ समाधि की स्थिति में सुनाई पड़ने वाला नाद भी है। कबीर, गुरु नानक, मलूकदास आदि मध्यकालीन भक्त-कवियों द्वारा इस शब्द के प्रयोग ने इसे विशेष लोकप्रिय बनाया है।
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