जानवर का निशान

jaanwar ka nishaan_

जोसेफ रुडयार्ड किपलिंग

जोसेफ रुडयार्ड किपलिंग

जानवर का निशान

जोसेफ रुडयार्ड किपलिंग

और अधिकजोसेफ रुडयार्ड किपलिंग

    तुम्हारे भगवान् और मेरे भगवान्—क्या तुम या मैं जानते हैं कि कौन ताक़तवर है?

    एक देसी कहावत

    कुछ का मानना है कि स्वेज के पूर्व में ईश्वर की कृपा का सीधा क़ाबू ख़त्म हो जाता है, वहाँ आदमी एशिया के देवताओं और राक्षसों की ताक़त के अधीन हो जाता है और किसी-किसी अंग्रेज़ आदमी को कभी-कभी इंग्लैंड के चर्च के भगवान् की कृपा अपनी सुरक्षा देती है।

    यह मत भारत में जीवन में होने वाली बेकार की डरावनी बातों के कारण है, इससे मेरी कहानी की व्याख्या हो सकती है।

    इस मामले में मेरा दोस्त पुलिसकर्मी स्ट्रिकलैंड, जो भारतवासियों के बारे में उतना जानता है, जितना जानना अच्छा होता है, तथ्यों का साक्षी हो सकता है। हमारे डॉक्टर डुमो ने भी उतना देखा, जितना मैंने और स्ट्रिकलैंड ने देखा। उसने इन प्रभावों से जो निष्कर्ष निकाला, वह बिलकुल ग़लत था। अब वह मर चुका है, बड़े अजीब ढंग से मरा था; इस बारे में कहीं और लिखा है।

    फ़्लीट जब हिंदुस्तान आया, तब उसके पास थोड़ा-सा पैसा और हिमालय के निकट धर्मशाला के क़रीब थोड़ी-सी ज़मीन थी। दोनों जायदादें उसे अपने चाचा से विरासत में मिली थीं। वह उन्हीं का इंतज़ाम करने आया था। वह शरीर से बड़ा और भारी भरकम, ख़ुशमिज़ाज, किसी से झगड़ा करने वाला इंसान था। उसकी भारतीयों के बारे में जानकारी बहुत सीमित थी और वह भाषा की परेशानी की शिकायत करता रहता था।

    वह अपनी पहाड़ी जगह से उस जगह नया साल मनाने के लिए आया था और स्ट्रिकलैंड के साथ ठहरा था। नए साल की पूर्वसंध्या को क्लब में बहुत बड़ी दावत थी। रात गीली-सी थी। जब लोग राज्य की सीमाओं से इकट्ठा होते हैं तो उन्हें ऊधम मचाने का हक होता है। सरहद से 'ज़िंदा पकड़ने वालों' की एक टुकड़ी भेजी गई थी जिन्होंने साल-भर में बीस गोरे चेहरे भी नहीं देखे थे। उन्हें खाना खाने के लिए पंद्रह मील दूर अगले क़िले पर जाना पड़ता था। शराब पीने की जगह खैबरी गोली खाने का ख़तरा होता था। यहाँ के सुरक्षित वातावरण में वे ख़ुश थे। बाग में मिले एक ऐंठे हुए झाऊ चूहे को लेकर सामूहिक जुआ खेलने की कोशिश कर रहे थे। उनमें से एक निशान लगाने वाले यंत्र को अपने दाँतों में दबाकर कमरे में घूम रहा था। दक्षिण से गए आधा दर्ज़न कृषक एशिया के सबसे बड़े झूठे के साथ, जो उनकी सब कहानियों को दबाने की कोशिश कर रहा था, मसखरी कर रहे थे। सब यहाँ इकट्ठा थे और पिछले साल में हमारे कितने आदमी मारे गए और कितने लाचार हुए, इसका हिसाब-किताब कर रहे थे। वह एक गीली रात थी और मुझे याद है कि हम पोलो चैंपियनशिप के कप में पैर रखकर, सितारों के बीच सिर ऊँचा किए, पुराने वक़्त की प्यारी याद में गीत गा रहे थे, और दोस्ती की क़समें खा रहे थे। फिर हममें से कुछ गए और बर्मा को साथ मिला लिया, कुछ सूडान की तरफ़ गए जहाँ सूडान के उत्तर-पूर्व में स्थित सुआक़ीम के बाहर उनकी वहाँ के लड़ाके योद्धाओं से मुठभेड़ हुई। कुछ को सितारे मिले, कुछ को पदक, कुछ ने शादी कर ली, जो कि बुरी बात थी, पर कुछ ने इससे भी बुरे काम किए। हममें से कुछ आपस में जुड़े रहे और थोड़े-बहुत अनुभवों से पैसा बनाने की कोशिश करते रहे।

    फ़्लीट ने रात की शुरुआत शेरी तथा बिटर्ज (नशीला पेय) से की। भोजन के अंत में मीठे पर पहुँचने तक वह शैंपेन पीता रहा, फिर कच्ची तीख़ी कैंप्री जिसमें व्हिस्की जैसी ताक़त होती है। इसके बाद कॉफ़ी के साथ बेनेडिक्टीन ली, चार-पाँच व्हिस्की और सोडा लिए जिससे खेल की बाज़ी बेहतर हो, ढाई बजे बीयर और बोंस लिया और फिर ब्रांडी से पीना ख़त्म किया। जब सुबह साढ़े तीन बजे वह बाहर आया तो चौदह डिग्री कुहरा था। वह अपने घोड़े के खाँसने से बहुत नाराज़ हुआ और कूदकर उस पर चढ़ना चाहता था कि घोड़ा भागकर अपनी घुड़साल में चला गया। अब मुझे और स्ट्रिकलैंड को उसे घर ले जाने की परेशानी उठानी पड़ी।

    हमारी सड़क बाज़ार के बीच से, एक छोटे से हनुमान मंदिर के पास से जाती थी। देवताओं में उनकी बड़ी इज़्ज़त है। हर देवता में कुछ विशेषताएँ होती हैं और हर पुजारी में भी। मैं व्यक्तिगत तौर पर हनुमान को बहुत महत्त्व देता हूँ और उनकी जाति अर्थात्—पहाड़ों के बंदरों— के प्रति दयालु हूँ। कौन जाने, कब दोस्त की ज़रूरत पड़ जाए!

    जब हम मंदिर के पास से निकले, तब मंदिर में रोशनी थी और कुछ लोग भजन गा रहे थे। एक देसी मंदिर में पुजारी को रात के किसी भी वक़्त भगवान् के लिए उठना पड़ता है। इससे पहले कि हम रोकें फ़्लीट सीढ़ियाँ चढ़कर गया, दो पुजारियों की पीठ थपथपाई और बड़ी गंभीरता से सिगार के टुकड़े की राख लाल पत्थर की हनुमान की मूर्ति के माथे पर रगड़ दी।

    स्ट्रिकलैंड ने उसे खींचकर हटाने की कोशिश की, पर वह बैठ गया और गंभीरता से बोला, “वह देख रहे हो? जानवर का निशान? मैंने बनाया है। अच्छा नहीं है?”

    आधे मिनिट में शोर मच गया। स्ट्रिकलैंड जानता था कि देवताओं को भ्रष्ट करने से क्या होता है। अतः बोला कि अब कुछ होगा। उस प्रदेश में काफ़ी पुराना अधिकारी होने के नाते, आस-पास के लोगों से मिलने की कमज़ोरी होने के नाते, पुजारी को जानने की वजह से उसे बहुत बुरा लग रहा था। फ़्लीट ज़मीन पर बैठा था और हिलने को राज़ी नहीं था। वह बोला, “अच्छे हनुमान का तकिया बड़ा नरम बनता है।”

    तभी बिना चेतावनी के देवता की मूर्ति के पीछे से एक चाँदी जैसा सफ़ेद आदमी निकला। इस तेज़ ठंड में भी वह पूरी तरह नंगा था। उसका शरीर जमी हुई चाँदी जैसा चमक रहा था। वह बाइबल में वर्णित 'एक कोढ़ी ऐसा सफ़ेद जैसी बर्फ़' जैसा था। कई सालों से बुरी तरह कोढ़ होने के कारण उसका चेहरा नहीं रहा था। हम दोनों झुके कि फ़्लीट को उठा लें, मंदिर में ऐसी भीड़ होती जा रही थी जैसे इंसान ज़मीन में से निकल रहे हों, तभी हमारी बाँहों के नीचे से ऊदबिलाव जैसा गुर्राता हुआ वह कोढ़ी आया, फ़्लीट को कमर से पकड़ा और हमारे छुड़ाने से पहले उसने फ़्लीट की छाती पर अपना सिर दे मारा। फिर वह एक कोने में चला गया और बैठा हुआ गुर्राने लगा। भीड़ ने सारे दरवाज़ें रोक दिए।

    पुजारी बहुत नाराज़ थे, पर कोढ़ी के पकड़कर मारने के बाद से थोड़ा शांत हो गए थे।

    कुछ मिनट की चुप्पी के बाद एक पुजारी आया और स्ट्रिकलैंड से शुद्ध अंग्रेज़ी में बोला, “अपने दोस्त को ले जाओ। उसने हनुमान से जो करना था कर लिया, पर हनुमान ने अभी नहीं किया।” भीड़ ने रास्ता बना दिया और हम फ़्लीट को उठाकर सड़क पर ले गए।

    स्ट्रिकलैंड बहुत नाराज़ था। वह बोला, “हम तीनों को छुरा मारा जा सकता था। फ़्लीट को अपनी क़िस्मत सराहनी चाहिए कि वह बिना चोट खाए बच गया।”

    फ़्लीट ने किसी को धन्यवाद नहीं दिया, वह बोला कि वह सोना चाहता है। वह बुरी तरह नशे में था।

    हम चल दिए, स्ट्रिकलैंड चुप था पर बहुत नाराज़ था। तभी फ़्लीट बुरी तरह काँपने लगा और पसीना-पसीना हो गया। वह बोला, “बाज़ार से तेज़ बदबू रही है।” उसे अचरज था कि अंग्रेज़ों के घर के पास क़साईखाना कैसे मौजूद था। “क्या तुम्हें ख़ून की गंध नहीं रही है?” उसने पूछा।

    आख़िर हमने उसे बिस्तर पर लिटा दिया, तब सुबह हो रही थी। स्ट्रिकलैंड ने मुझे एक गिलास व्हिस्की के लिए आमंत्रित किया। पीते-पीते हम मंदिर में हुई गड़बड़ी की बात कर रहे थे। पूरी घटना ने उसे बुरी तरह परेशान कर दिया था।

    स्ट्रिकलैंड का काम देसी लोगों के हथकंडों का पूरा जवाब देना था। अगर उनका कोई काम उसे ताज्जुब में डाले तो उसे नफ़रत होती थी। अभी तक वह अपने काम में पूरी तरह सफल नहीं हुआ था पर पंद्रह-बीस साल में कुछ सफलता मिलने की उम्मीद थी।

    वह बोला, “उन्हें तो हमें ख़त्म कर देना चाहिए था, पर उसकी जगह वे गुर्रा रहे थे। पता नहीं वे क्या चाहते थे? मुझे यह सब ज़रा भी अच्छा नहीं लगा।’’

    मैंने कहा, “मेरे ख़याल से मंदिर की प्रबंधक समिति, उनके धर्म का अपमान करने के ज़ुर्म में हमारे ख़िलाफ़ कार्यवाही करेगी। भारतीय दंड संहिता में फ़्लीट द्वारा किए गए ज़ुर्म की सज़ा थी।” स्ट्रिकलैंड ने कहा कि वह यही उम्मीद और प्रार्थना करता है कि वे ऐसा करें। लौटने से पहले मैं फ़्लीट को देखने गया। देखा कि वह दाईं करवट लेटा हुआ, छाती की बाईं तरफ़ खुजा रहा था। सुबह सात बजे, उदास, नाख़ुश और सर्दी से मारा मैं भी बिस्तर पर गया।

    एक बजे मैं फ़्लीट के सिर के दर्द के बारे में जानने के लिए स्ट्रिकलैंड के घर गया, क्योंकि मैं सोचता था कि उसका सिर बहुत दुःख रहा होगा। फ़्लीट नाश्ता कर रहा था। वह बहुत ठीक नहीं दिख रहा था। पर उसका मिज़ाज ठीक था, क्योंकि वह रसोइए को ठीक नाश्ता देने के लिए गालियाँ दे रहा था। एक आदमी ठंडी रात के बाद कच्चा मांस खा सके, यह अचरज की बात है। मेरे यह कहने पर फ़्लीट हँस पड़ा।

    इस जगह अजीब मच्छर हैं, “वह बोला, “एक ही जगह पर वे मुझे बुरी तरह खा गए हैं।”

    स्ट्रिकलैंड ने कहा, “दिखाओ, कहाँ काटा है, शायद अब ठीक हो गया हो।”

    जितनी देर में नाश्ता रहा था, फ़्लीट ने क़मीज़ खोली और हमें दिखाया। उसकी छाती पर बाईं तरफ़ चीते की खाल के से गोलाकार पाँच या छह बेतरतीब धब्बे थे, जो काले गुलाब के दुगने आकार के थे। स्ट्रिकलैंड ने देखकर कहा, “सुबह ये गुलाबी थे, अब काले हो गए हैं।”

    फ़्लीट शीशे की तरफ़ भागा तथा उधर देखकर बोला, “ये तो बड़े भयानक दिख रहे हैं। क्या हैं?”

    हम कोई जवाब नहीं दे पाए। इतने में नाश्ता गया। चापें लाल और रसीली थीं। फ़्लीट ने घृणास्पद ढंग से तीन निकाल लीं। वह दाईं तरफ़ की दाढ़ों से चबा रहा था। मांस काटते वक़्त उसका सिर भी दाएँ कंधे की तरफ़ झुका था। ख़त्म करने पर उसने अपने अजीब व्यवहार के लिए माफ़ी माँगते हुए कहा, “मेरे ख़याल से मैं जीवन में कभी इतना भूखा नहीं हुआ। मैंने शुतुरमुर्ग की तरह निगल लिया।”

    नाश्ते के बाद स्ट्रिकलैंड ने मुझसे कहा, “कहीं मत जाओ। आज रात यहीं बिता लो।”

    मेरा घर उसके घर से तीन मील भी दूर नहीं था, अतः उसका यह कहना बेवक़ूफ़ी भरा लग रहा था। पर स्ट्रिकलैंड ज़िद करने लगा। वह कुछ कहने वाला था कि फ़्लीट ने शर्मिंदगी से कहा कि उसे फिर भूख लग रही है। स्ट्रिकलैंड ने एक आदमी भेजकर मेरे घर से मेरा बिस्तर और घोड़ा मँगवा लिया। हम तीनों स्ट्रिकलैंड के अस्तबल की तरफ़ गए, ताकि घुड़सवारी के लिए जाने से पहले कुछ समय वहाँ बिता लें। जिसे घोड़ों से प्यार हो, वह उन्हें घंटों देखकर भी थकता नहीं है। और जब दो आदमी वक़्त काटने के लिए ऐसा कर रहे हों तो एक-दूसरे से झूठ-सच बोलते रहते हैं।

    अस्तबल में पाँच घोड़े थे। जब हम वहाँ पहुँचे तो जो दृश्य था उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। लगा कि जैसे घोड़े पागल हो गए हैं। वे ज़ोर से हिनहिना रहे थे। ऐसा लग रहा था कि खूँटे उखाड़ देंगे; वे पसीने से नहा रहे थे, काँप रहे थे। मुँह से झाग निकाल रहे थे, डर से परेशान थे। स्ट्रिकलैंड के घोड़े उसे उतनी ही अच्छी तरह पहचानते थे, जितना कि उसके कुत्ते। इसलिए और अचरज हो रहा था। उनको इतना डरा हुआ और परेशान देखकर हम वहाँ से निकल आए। फिर स्ट्रिकलैंड मुड़ा और उसने मुझे बुलाया। घोड़े तब भी डरे हुए थे, पर हमें सहलाने दे रहे थे और अपना सिर हमारी छाती पर रख रहे थे।

    स्ट्रिकलैंड ने कहा, “ये हमसे नहीं डर रहे। अगर 'आउटरेज़' (घोड़े का नाम) बोल सकता होता तो मैं उसे अपनी तीन महीने की तनख़्वाह देने को तैयार हो जाता।”

    पर आउटरेज़ गूँगा था। वह सिर्फ़ अपने मालिक से लिपट सकता था, नथुने बजा सकता था, क्योंकि घोड़ों का बात करने का यही तरीक़ा होता है। अभी हम अस्तबल में ही थे कि फ़्लीट दुबारा वहाँ आया। उसे देखते ही घोड़े फिर डर से परेशान हो गए। इससे पहले कि वे हमें लात मारते हम वहाँ से भागे। स्ट्रिकलैंड ने कहा, “ऐसा लगता है कि वे तुम्हें पसंद नहीं करते।”

    फ़्लीट बोला, “बेकार बात, मेरी घोड़ी मेरे पीछे कुत्ते की तरह आती है।” वह उसके पास गया। वह खुले अस्तबल में थी, जैसे ही उसने डंडा हटाया, वह आगे बढ़ी, फ़्लीट को गिराया और बगीचे की तरफ़ भाग गई। मैं हँस पड़ा, पर स्ट्रिकलैंड को हँसी नहीं आई। वह दोनों हाथों से अपनी मूँछें इतनी देर तक खींचता रहा कि वे उखड़ने वाली हो गईं। फ़्लीट अपनी घोड़ी को पकड़ने जाने की जगह उबासी लेकर बोला कि उसे नींद रही थी। वह घर गया और लेट गया। नए साल का दिन बिताने का यह बेवक़ूफ़ी भरा ढंग था।

    स्ट्रिकलैंड घुड़साल में मेरे साथ बैठा रहा। उसने मुझसे पूछा कि मुझे फ़्लीट के आचरण में कोई ख़ास बात दिखी। मैंने कहा कि वह जानवर की तरह खा रहा था, पर उसका कारण यह हो सकता है कि वह पहाड़ों पर अकेला रहता है जहाँ हमारे जैसे और ऊँचे सभ्य समाज से उसका वास्ता ही नहीं पड़ता। स्ट्रिकलैंड को हँसी नहीं आई। मुझे लगता है वह मेरी बात सुन ही नहीं रहा था, क्योंकि उसका अगला वाक्य फ़्लीट की छाती पर बने निशान के बारे में था। मैंने कहा कि हो सकता है किसी ज़हरीली मक्खी ने काट लिया हो या कोई जन्म का निशान हो, जो अब दिखाई दे रहा था। हम दोनों ने यह ज़रूर माना कि वह देखने में अच्छा नहीं था। स्ट्रिकलैंड ने मुझे बेवक़ूफ़ कहा।”

    वह बोला, “मैं क्या सोचता हूँ, यह अभी नहीं बताऊँगा, क्योंकि तब तुम मुझे पागल कहोगे, पर हो सके तो अगले कुछ दिन तुम मेरे पास रहो। मैं चाहता हूँ कि तुम फ़्लीट पर नज़र रखो। पर जब तक मैं अपने नतीज़े पर पहुँचूँ, मुझे कुछ नहीं बताना।”

    मैंने कहा, “लेकिन मैं आज रात को बाहर खाना नहीं खाऊँगा।”

    स्ट्रिकलैंड बोला, “मैं भी और फ़्लीट भी, अगर वह अपना दिमाग़ बदले तो!”

    हम बगीचे में घूमते रहे और पाइप पीते रहे। जब तक पाइप ख़त्म नहीं हुआ, हम कुछ नहीं बोले, क्योंकि हम दोस्त थे और बोलने से अच्छे तंबाकू का मज़ा चला जाता है। फिर हम फ़्लीट को जगाने गए। वह जाग रहा था और अपने कमरे में बेचैनी से घूम रहा था।

    हमें देखकर वह बोला, “मैं कह रहा था कि मुझे कुछ और चापें चाहिए। क्या मिलेंगी?”

    हम हँसे और कहा, “जाओ, कपड़े बदल लो, पल-भर में घोड़े जाएँगे।”

    “ठीक है,” उसने कहा, “मैं चलूँगा, पर चाप मिलने के बाद—वह कुछ कम पकी होनी चाहिए।”

    वह काफ़ी गंभीर लग रहा था। चार बजे थे। हमने एक बजे नाश्ता किया था, फिर भी वह काफ़ी देर से कम पकी चापें माँग रहा था। फिर उसने घुड़सवारी के लिए कपड़े पहने, बाहर बरामदे में गया। उसकी घोड़ी तो पकड़ी नहीं जा सकी—उसे पास नहीं आने दे रही थी। तीनों घोड़े बेक़ाबू हो रहे थे—डर से पागल! आख़िर फ़्लीट ने कहा कि वह घर पर ही रुकेगा और यहीं कुछ खा लेगा। स्ट्रिकलैंड और मैं घुड़सवारी के लिए निकले। हम सोच में डूबे थे। जैसे ही हम हनुमान मंदिर के पास से निकले, वह सफ़ेद आदमी आया और हम पर म्याऊँ, म्याऊँ करने लगा।

    स्ट्रिकलैंड ने कहा कि “यह मंदिर के पुराने पुजारियों में से नहीं है। मेरा मन करता है कि यह मेरे हाथ लग जाए।”

    उस शाम हमारा घुड़सवारी में कोई उत्साह नहीं था। घोड़े भी बिना उत्साह के ऐसे चल रहे थे जैसे पहले चलने से थके हों।

    स्ट्रिकलैंड बोला, “नाश्ते के बाद का झटका इनके लिए बहुत हो गया।” बाक़ी का पूरा रास्ता वह कुछ नहीं बोला। मेरे ख़याल से एक-दो क़सम खाई होगी पर वह बातों की गिनती में नहीं होगा।

    सात बजे अँधेरा होने पर हम लौट आए तो देखा कि बँगले में कोई बत्ती नहीं जल रही थी। स्ट्रिकलैंड ने कहा, “मेरे नौकर बड़े बदमाश और लापरवाह हैं।”

    मेरा घोड़ा पगडंडी पर हिनहिनाया, फ़्लीट आकर ठीक उसकी नाक के नीचे खड़ा हो गया।

    स्ट्रिकलैंड ने पूछा, “तुम यहाँ बगीचे में क्या कर रहे हो?”

    इतने में ही दोनों घोड़े ऐसे भागे कि हमें गिरा ही देते। अस्तबल के पास हम उतरे और वापस फ़्लीट के पास आए, जो घुटनों और हाथों के बल संतरे के झाड़ के नीचे खड़ा था।

    स्ट्रिकलैंड बोला, “तुम्हें क्या हुआ है?”

    फ़्लीट ने जल्दी-जल्दी भारी आवाज़ में जवाब दिया, “कुछ नहीं, तुम जानते हो मैं बाग़वानी कर रहा था। मिट्टी की ख़ुशबू बहुत अच्छी रही है। मेरे ख़याल से मैं सारी रात सैर करने—लंबी सैर करने जाऊँगा।” तब मुझे लगा, कहीं बहुत गड़बड़ है। मैंने स्ट्रिकलैंड से कहा, “मैं बाहर खाना खाने नहीं जाऊँगा।”

    स्ट्रिकलैंड ने फ़्लीट से कहा, “उठो, तुम्हें बुख़ार जाएगा। अंदर चलो, खाना खाएँगे, रोशनी करेंगे। हम सब घर पर ही खाएँगे।”

    फ़्लीट बेमन से उठा और बोला, “लैंप नहीं-लैंप नहीं। यहाँ ज़्यादा अच्छा है। हम बाहर बैठकर खाते हैं। कुछ और चापें—ढेर सारी और कम पकी हुई—लाल और कुरकुरी।”

    उत्तरी भारत में दिसंबर के महीने में काफ़ी ठंड होती है, फ़्लीट का सुझाव एक पागल का सुझाव था।

    स्ट्रिकलैंड ने सख़्ती से कहा, “अंदर आओ, फ़ौरन अंदर आओ!”

    फ़्लीट अंदर आया। लैंप आने पर हमने देखा कि वह सिर से पैर तक मिट्टी और गंदगी से लथपथ था। वह शायद बग़ीचे में कलाबाजियाँ खा रहा था। रोशनी आते ही वह सिमट उठा और अपने कमरे में चला गया। उसकी आँखें भयानक लग रही थीं, उनमें कुछ नहीं था, पर उनके पीछे हरी रोशनी थी। उसका नीचे का होंठ लटका हुआ था।

    स्ट्रिकलैंड ने कहा, “आज रात को भयानक परेशानी आने वाली है। तुम कपड़े मत बदलना।”

    हमने खाना मँगवाया और फ़्लीट के आने का इंतज़ार करते रहे। वह अपने कमरे में चक्कर लगा रहा था, पर उसने बत्ती नहीं जलाई थी। तभी कमरे से भेड़िए की लंबी रोने की आवाज़ आई।

    लोग-बाग ख़ून ठंडा होने और बाल उखड़ जाने की बात बड़े हलके ढंग से लिख या कह देते हैं। पर दोनों अनुभव बड़े भयानक हैं। उन्हें हलके ढंग से नहीं लेना चाहिए। मेरा दिल ऐसे रुक गया, जैसे चाकू घुसा दिया गया हो, स्ट्रिकलैंड मेज़ पर बिछे कपड़े जैसा सफ़ेद पड़ गया।

    एक बार फिर वही रोने की आवाज़ आई और खेतों के पार से उसका जवाब आया।

    इससे डर और बढ़ गया। स्ट्रिकलैंड फ़्लीट के कमरे की तरफ़ भागा, मैं पीछे भागा। हमने देखा फ़्लीट खिड़की से बाहर निकल रहा था। उसके गले से जानवरों की-सी आवाज़ निकल रही थी। जब हम उस पर चिल्लाए तो वह जवाब नहीं दे पाया। उसने थूका।

    मुझे याद नहीं कि फिर क्या हुआ, पर मैं सोचता हूँ कि स्ट्रिकलैंड ने ज़रूर उसे जूते उतारने वाले लंबे उपकरण से मारकर अचंभे में डाल दिया होगा, नहीं तो मैं कभी भी उसकी छाती पर नहीं बैठ सकता था। फ़्लीट कुछ बोल नहीं पा रहा था, सिर्फ़ गुर्रा रहा था। उसकी गुर्राहट भेड़िए जैसी थी, इंसान जैसी नहीं। उसके अंदर का आदमी शायद सारा दिन लड़ने के बाद मर गया होगा। अब हमारा वास्ता उस जानवर से था, जो कभी फ़्लीट था।

    पूरी घटना किसी इंसान के विवेकपूर्ण अनुभव से परे थी। मैं इसे हाइड्रोफ़ोबिया (पागल कुत्ते के काटने की बीमारी) कहना चाहता था, पर शब्द मेरे गले से नहीं निकल रहा था, क्योंकि मैं जानता था कि वह झूठ है।

    हमने इस जानवर को पंखे की चमड़े की रस्सी से बाँधा और उसके हाथ के अँगूठे और पैर के अँगूठे को साथ-साथ बाँध दिया, जूते पहनने के हॉर्न को मुँह में फँसा दिया, अगर उसे लगाना जानते हो तो वह बहुत असरदार होता है। फिर हम उसे खाने वाले कमरे में ले गए। और एक आदमी को डुमो डॉक्टर के पास भेजा और कहा कि वे फ़ौरन जाएँ। आदमी के जाने के बाद हमने साँस ली। तब स्ट्रिकलैंड बोला, “उससे कुछ नहीं होगा, यह डॉक्टर के वश का काम नहीं है।” मैं जानता था कि वह ठीक कह रहा था।

    जानवर का सिर आज़ाद था। वह उसे इधर-उधर फेंक रहा था। कोई कमरे में घुसता तो यही सोचता कि हम भेड़िए की खाल पका रहे थे।

    स्ट्रिकलैंड अपनी हथेली पर ठोड़ी टिकाए बैठा उस जानवर को ज़मीन पर रेंगते हुए देख रहा था, पर कुछ कह नहीं रहा था। खींचातानी में उसकी क़मीज़ फट गई थी और छाती पर बने काले निशान दिख रहे थे। वे छाले जैसे दीख रहे थे।

    हम चुपचाप बैठे देख रहे थे कि हमें बाहर कोई आवाज़ सुनाई दी। वह मादा ऊदबिलाव की-सी थी। हम दोनों खड़े हो गए और चाहे स्ट्रिकलैंड के बारे में नहीं पर अपने बारे में कह सकता हूँ कि मुझे लगा, जैसे मैं बीमार हूँ, सच में शरीर से में बीमार हूँ। हमने एक दूसरे से कहा कि वह बिल्ली है।

    डुमो आया। मैंने कभी किसी व्यावसायिक आदमी को इस क़दर डरा हुआ नहीं देखा। उसने कहा कि यह तो हाइड्रोफ़ोबिया का दिल दहलाने वाला केस है। इसमें अब कुछ नहीं किया जा सकता। शांति देने वाले उपायों से उसकी तकलीफ़ और लंबी होगी। जानवर के मुँह से झाग निकल रहा था। हमने डुमो को बताया कि फ़्लीट को एक-दो बार कुत्ते ने काटा था। कोई भी आदमी जो कुत्ते पालता है, कभी-कभी उनके द्वारा काटा भी जाता है। डुमो कोई मदद नहीं कर सका सिवाय इसके कि वह यह प्रमाणपत्र दे सकता था कि फ़्लीट कुत्ते के काटे से मर रहा था। तब तक जानवर शू हार्न (जूता पहनने का छोटा-सा उपकरण) थूकने में कामयाब होकर अब गुर्रा रहा था। डुमो ने कहा अंत तय था और वह उसका कारण प्रमाणित करने को तैयार था। वह अच्छा आदमी था और हमारे साथ रुकने को राज़ी था; पर स्ट्रिकलैंड ने इससे इनकार कर दिया। वह उसका नए साल का दिन ख़राब नहीं करना चाहता था। उसने सिर्फ़ इतना कहा कि फ़्लीट की मृत्यु का असली कारण लोगों को बताया जाए।

    परेशान डुमो लौट गया। जैसे ही उसकी गाड़ी के पहियों की आवाज ख़त्म हुई, स्ट्रिकलैंड ने फुसफुसाते हुए मुझे अपने मन का शक बताया। पर उसे यह ख़ुद ही इतना अविश्वसनीय लग रहा था कि वह इस बारे में ज़ोर से बोल भी नहीं पा रहा था; मैं जो स्ट्रिकलैंड के हर विश्वास को मानता था, इसे मानने पर इतना शर्मिंदा था कि अविश्वास का दिखावा कर रहा था।

    “अगर कोढ़ी ने फ़्लीट को हनुमान की मूर्ति भ्रष्ट करने के लिए जादू किया भी है तो इतनी जल्दी दंड कैसे मिला?”

    जब मैं यह फुसफुसा रहा था तभी घर के बाहर से फिर आवाज़ आई और वह जानवर नए सिरे से ताक़त लगाने लगा। हमें डर था कि कहीं वह चमड़े के पट्टे को तोड़ डाले।

    “देखो!” स्ट्रिकलैंड बोला, “अगर ऐसा इस बार हुआ तो मैं क़ानून अपने हाथ में ले लूँगा। मैं तुम्हें हुक्म देता हूँ कि तुम्हें मेरी मदद करनी होगी।”

    वह अपने कमरे में गया और कुछ ही मिनट बाद एक पुरानी शॉटगन की नली, मछली पकड़ने वाले काँटे का टुकड़ा, एक मोटी रस्सी और पलंग के लकड़ी के भारी पाए लेकर आया। मैंने बताया था कि उस चीख़ के दो सेकेंड के बाद जानवर को दौरे पड़ते थे। अब वह कमज़ोर होता दिखाई दे रहा था।

    स्ट्रिकलैंड बड़बड़ाया, “पर वह किसी की ज़िंदगी नहीं ले सकता! वह ज़िंदगी नहीं ले सकता!”

    “जानते हुए भी कि मैं अपने विश्वास के ख़िलाफ़ बोल रहा था, मैंने कहा, वह बिल्ली हो सकती है। वह बिल्ली ही होगी। अगर वह कोढ़ी ज़िम्मेदार होता तो यहाँ आने की हिम्मत कैसे करता?”

    स्ट्रिकलैंड ने लकड़ी के चूल्हे में रखी बंदूक की नली आग की लौ पर रखी, मेज़ पर रस्सी फैलाई और एक बेंत के दो टुकड़े किए। मछली पकड़ने वाली डंडी एक गज की थी, आगे तार लगा था, जैसा मछली पकड़ने में होता है। उसने दोनों सिरे इकट्ठे बाँधकर एक फंदा बनाया।

    फिर वह बोला, “हम उसे कैसे पकड़ें? उसे ज़िंदा और सही सलामत पकड़न है।”

    मैंने कहा, “हमें नियति पर विश्वास करना होगा। पोलो खेलने वाली लकड़ी लेकर धीरे से घर के सामने वाले झाड़ में जाना होगा। चीख़ने वाला आदमी या जानवर बार-बार घर के चारों तरफ़ ऐसे चक्कर काट रहा है जैसे चौकीदार हो। हम झाड़ियों में इंतज़ार करते रहेंगे और पास आने पर उस पर झपट पड़ेंगे।”

    स्ट्रिकलैंड ने सुझाव मान लिया। हम ग़ुसलखाने की खिड़की से आगे वाले बरामदे में होते हुए पगडंडी पर उतरकर झाड़ियों में चले गए।

    चाँदनी में हमें वह कोढ़ी घर के कोने से आता दिखाई दिया। वह बिलकुल नंगा था, बीच-बीच में गुर्राता था और रुककर अपनी परछाईं के साथ नाचता था। वह बड़ा भद्दा दृश्य था और यह सोचकर कि इस बुरे आदमी ने फ़्लीट की क्या हालत बना दी है, मैंने अपने सब शक छोड़कर स्ट्रिकलैंड की मदद करने का निश्चय किया, और तय किया कि गरम की हुई बंदूक़ की नली से लेकर फंदा बनी रस्सी—जाँघ से सिर तक वापस ले जाने—ज़रूरत पड़ने पर किसी भी तरह की यंत्रणा देने में पीछे नहीं हटूँगा।

    जैसे ही कोढ़ी पल-भर को हमारे सामने रुका, हम छड़ी लेकर उस पर कूद पड़े। वह बहुत ताक़तवर था और हमें डर था कि हमारे पकड़ने से पहले भाग जाए या घायल हो जाए। हमारा यह ख़याल कि कोढ़ी कमज़ोर होते हैं, ग़लत निकला। स्ट्रिकलैंड ने उसकी टाँगों में धक्का मारा और मैंने उसके गले पर पैर रख दिया। वह बुरी तरह गुर्राने लगा। अपने घुड़सवारी के जूतों के नीचे से मैं भी महसूस कर रहा था कि उसकी खाल स्वस्थ आदमी की खाल नहीं है।

    वह अपने हाथ-पैर के ठूँठों से हमें मारने की कोशिश कर रहा था। हमने कुत्ते की रस्सी उसकी बग़लों के नीचे से डालकर उसे फंदे में बाँध लिया था। फिर उलटा घसीटते हुए हॉल से होते हुए उसे खाने वाले कमरे में ले गए, जहाँ वह जानवर पड़ा था। वहाँ हमने उसे बक्से के कुंडे से बाँध दिया। उसने छूटने की कोशिश नहीं की, पर गुर्राता रहा।

    जब हम कोढ़ी को जानवर के सामने ले गए, उस समय के दृश्य का वर्णन नहीं किया जा सकता। जानवर धनुष की तरह पीछे दुहरा हो गया, जैसे किसी ने उसे ज़हर दे दिया हो और दर्दनाक ढंग से कराहने लगा। फिर बहुत कुछ हुआ, जो मैं यहाँ लिख नहीं सकता।

    “मेरे ख़याल से मैं सही था, स्ट्रिकलैंड बोला,”अब हम उससे इसे ठीक करने को कहेंगे।”

    कोढ़ी केवल गुर्रा रहा था। स्ट्रिकलैंड ने अपने हाथ पर एक तौलिया लपेटा और आग से बंदूक की नली निकाली। मैंने छड़ी का आधा हिस्सा मछली पकड़ने की डोरी के फंदे में डाला और आराम से कोढ़ी को स्ट्रिकलैंड के पलंग के पाए से बाँध दिया। अब मैं समझा कि कैसे आदमी-औरत और छोटे बच्चे तक एक चुड़ैल को ज़िंदा जलाते देखना सहन कर लेते हैं; जानवर ज़मीन पर कराह रहा था। कोढ़ी का चेहरा नहीं था, पर चेहरे की जगह जो पत्थर था, उस पर भयानक भाव गुज़र रहे थे, बिलकुल ऐसे जैसे लाल गरम लोहे पर गरमाई की लहरें खेलती हैं—उदाहरण के लिए बंदूक़ की नली।

    स्ट्रिकलैंड ने पल-भर के लिए अपनी आँखों पर हाथों से छाया की और हम काम में लग गए। यह क़िस्सा छापने के लिए नहीं है।

    जब कोढ़ी बोला, तब सुबह होने वाली थी। उस वक़्त तक वह गुर्रा रहा था, जिससे हमें कोई तसल्ली नहीं मिल रही थी। जानवर थक कर बेहोश हो गया था। घर में सन्नाटा था। हमने कोढ़ी को खोला और उससे कहा कि वह बुरी आत्मा को ले जाए। वह रेंगकर जानवर तक गया, उसने अपना हाथ उसकी छाती पर बाईं तरफ़ रखा। बस इतना ही। फिर वह मुँह के भार गिर गया और साँस अंदर खींचते हुए रोने लगा।

    हम जानवर का चेहरा देख रहे थे और देखते-देखते उसकी आँखों में फ़्लीट की आत्मा लौट आई। फिर माथे पर पसीना गया और उसने आँखें—इंसानी आँखें—बंद कर लीं। हमने एक घंटा इंतज़ार किया, पर फिर भी फ़्लीट सोता रहा। हम उसे उसके कमरे में ले गए और कोढ़ी से जाने को कहा, उसे पलंग का पाया, चादर, जिससे वह अपने नंगेपन को ढक सके, दस्ताने और तौलिया, जिनसे हमने उसे छुआ था और वह चाबुक, जो उसके बदन के चारों तरफ़ लपेटी हुई थी, दे दी। उसने चादर से अपने को लपेटा और बहुत सुबह बिना बोले, बिना गुर्राए चला गया।

    स्ट्रिकलैंड ने अपना मुँह पोंछा और बैठ गया। दूर शहर में घंटा बजा। सात बजे थे।

    स्ट्रिकलैंड ने कहा, “पूरे चौबीस घंटे! मैंने नौकरी से निकाले जाने और हमेशा के लिए पागलखाने भेजे जाने लायक काफ़ी कुछ किया है। तुम्हें विश्वास है कि हम जाग रहे हैं?”

    लाल दहकती बंदूक की नली ज़मीन पर गिरकर क़ालीन जला रही थी। उसकी गंध सच्ची थी।

    उस दिन सुबह ग्यारह बजे हम दोनों साथ-साथ फ़्लीट को जगाने गए। हमने देखा कि उसकी छाती पर चीते की खाल जैसे जो काले धब्बे बने थे, वे ग़ायब हो गए थे। वह थका हुआ और नींद में था। पर जैसे ही उसने हमें देखा तो बोला, “ओह! सत्यानाश! नया साल मुबारक़ हो! कभी शराब नहीं पीनी चाहिए। मैं मरने वाला हो गया था।”

    “तुम्हारी कृपा के लिए धन्यवाद, पर तुम आगे निकल गए हो। आज दो तारीख़ की सुबह है। तुम पूरे चौबीस घंटे सोए हो।”

    दरवाज़ा खुला, डॉक्टर डुमो ने झाँका, वह पैदल आया था। उसने सोचा था कि हम फ़्लीट को नीचे उतार रहे होंगे।

    “मैं एक नर्स लाया हूँ,” उसने कहा, “मेरे ख़याल से वह जो ज़रूरत हो, कर सकती है...”

    फ़्लीट ने ख़ुशी से भरकर बिस्तर पर बैठते हुए कहा, “ज़रूर, अपनी सब नर्सें ले आओ।”

    डॉक्टर गूँगा हो गया। स्ट्रिकलैंड उसे बाहर ले गया और समझाया कि शायद उसे बीमारी जानने में कोई ग़लती हो गई होगी। वह चुप ही रहा और जल्दी से चला गया। उसे अपनी व्यावसायिक इज़्ज़त की फ़िक्र हुई होगी। स्ट्रिकलैंड भी बाहर चला गया। जब वह लौटा तो उसने बताया कि वह हनुमान मंदिर गया था। उसने देवता को भ्रष्ट करने का हरज़ाना देने को कहा। और बताया कि कभी किसी गोरे आदमी ने मूर्ति को नहीं छुआ और यह भी कि वह आदमी सारे गुणों से भरा है पर वह किसी धोखे में पड़ गया। स्ट्रिकलैंड ने पूछा, “तुम क्या सोचते हो?”

    मैंने कहा, “और भी बातें हैं...”

    पर स्ट्रिकलैंड को मेरी इस उक्ति से नफ़रत है। वह कहता है कि मैंने इसके बहुत से प्रयोग से इसे घिसा दिया है।

    एक और अजीब बात हुई, जिसने उस रात को हुई सारी घटनाओं जितना ही मुझे डराया। जब फ़्लीट कपड़े पहनकर खाने वाले कमरे में आया तो सूँघने लगा। सूँघते समय वह अपनी नाक अजीब ढंग से हिलाता था। “यहाँ कुत्ते की भयानक गंध है। तुम्हें अपने इन कुत्तों को बेहतर ढंग से रखना चाहिए। स्ट्रिक, गंधक का प्रयोग करके देखो।”

    स्ट्रिकलैंड ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने कुर्सी का पीछे का हिस्सा पकड़ा और अचानक बिना किसी चेतावनी के हिस्टीरिया के आश्चर्यजनक दौरे से ग्रस्त हो गया। एक ताक़तवर आदमी को इस तरह के दौरे के क़ाबू में देखकर बहुत बुरा लगता है। फिर भी मुझे याद आया कि इसी कमरे में हमने फ़्लीट की आत्मा को छुड़ाने के लिए कोढ़ी से लड़ाई की थी। हमने अंग्रेज़ों को हमेशा के लिए बदनाम कर दिया था। याद आते ही मैं भी स्ट्रिकलैंड की तरह शर्मनाक ढंग से हँसते-हँसते हाँफने और गुर्राने लगा। फ़्लीट ने सोचा, हम दोनों पागल हो गए हैं। हमने उसे कभी नहीं बताया कि हमने क्या किया था।

    कुछ साल बाद स्ट्रिकलैंड ने शादी कर ली और पत्नी के प्रभाव में समाज की चर्चा में आने वाला सदस्य बन गया। हमने इस पूरी घटना के बारे में तटस्थता से सोचा और स्ट्रिकलैंड को लगा कि मुझे यह घटना जनता के सामने लानी चाहिए।

    मैं नहीं जानता कि इस क़दम के उठाने से रहस्य की गुत्थी सुलझेगी; क्योंकि पहली बात तो यह है कि कोई इस अरुचिकर कहानी पर विश्वास ही नहीं करेगा, और दूसरे हर बुद्धिमान व्यक्ति को पता है कि मूर्तिपूजकों के भगवान् पत्थर और पीतल के होते हैं, उनके साथ दुर्व्यवहार करने की कोशिश को निश्चित रूप से निंदनीय माना जाता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 27-40)
    • संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
    • रचनाकार : जोसेफ रड्यर्ड किप्लिङ
    • प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
    • संस्करण : 2008

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए