लखनवी अंदाज़

lakhnavi andaaz

यशपाल

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लखनवी अंदाज़

यशपाल

और अधिकयशपाल

    मुफ़स्सिल को पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूँकार रही थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नई कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए टिकट सेकंड क्लास का ही ले लिया।

    गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को ख़ाली समझकर, ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताज़े-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कूद जाने से सज्जन की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक़ करते देखे जाने के संकोच में हों।

    नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया। हमने भी उनके सामने की बर्थ पर बैठकर आत्मसम्मान में आँखे चुरा लीं।

    ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिलकुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफ़ायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट ख़रीद लिया हो और अब गवारा हो कि शहर का कोई सफ़ेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफ़र करता देखे।...अकेले सफ़र का वक़्त काटने के लिए ही खीरे ख़रीदे होंगे और अब किसी सफ़ेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ?

    हम कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे। नवाब साहब कुछ देर गाड़ी की खिड़की से बाहर देखकर स्थिति पर ग़ौर करते रहे।

    'ओह', नवाब साहब ने सहसा हमें संबोधन किया, 'आदाब-अर्ज़' जनाब, खीरे का शौक़ फ़रमाएँगे?

    नवाब साहब का सहसा भाव-परिवर्तन अच्छा नहीं लगा। भाँप लिया, आप शराफ़त का गुमान बनाए रखने के लिए हमें भी मामूली लोगों की हरकत में लथेड़ लेना चाहते हैं। जवाब दिया, 'शुक्रिया, क़िबला शौक़ फ़रमाएँ।'

    नवाब साहब ने फिर एक पल खिड़की से बाहर देखकर ग़ौर किया और दृढ़ निश्चय से खीरों के नीचे रखा तौलिया झाड़कर सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से लोटा उठाकर दोनों खीरों को खिड़की से बाहर धोया और तौलिए से पोंछ लिया। जेब से चाक़ू निकाला। दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला। फिर खीरों को बहुत एहतियात से छीलकर फ़ाँकों को क़रीने से तौलिए पर सजाते गए।

    लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीक़ा जानते हैं। ग्राहक के लिए ज़ीरा-मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाज़िर कर देते हैं।

    नवाब साहब ने बहुत क़रीने से खीरे की फाँकों पर ज़ीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्ख़ी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था।

    हम कनखियों से देखकर सोच रहे थे, मियाँ रईस बनते हैं, लेकिन लोगों की नज़रों से बच सकने के ख़याल में अपनी असलियत पर उतर आए हैं।

    नवाब साहब ने फिर एक बार हमारी ओर देख लिया, 'वल्लाह, शौक़ कीजिए, लखनऊ का बालम खीरा है।'

    नमक-मिर्च छिड़क दिए जाने से ताज़े खीरे की पनियाती फाँकें देखकर पानी मुँह में ज़रूर रहा था, लेकिन इनकार कर चुके थे।आत्मसम्मान निबाहना ही उचित समझा, उत्तर दिया, 'शुक्रिया, इस वक़्त तलब महसूस नहीं हो रही, मेदा भी ज़रा कमज़ोर है, क़िबला शौक़ फ़रमाएँ।’

    नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूँघा। स्वाद के आनंद में पलके मुँद गईं। मुँह में भर आए पानी का घूँट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते गए।

    नवाब साहब ने खीरे की सब फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर तौलिए से हाथ और होंठ पोंछ लिए और गर्व से गुलाबी आँखों से हमारी ओर देख लिया, मानो कह रहे हों—यह है ख़ानदानी रईसों का तरीक़ा!

    नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर ख़म कर लेना पड़ा—यह है ख़ानदानी तहज़ीब, नफ़ासत और नज़ाकत!

    हम ग़ौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीक़े को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफ़ीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीक़ा ज़रूर कहा जा सकता है। परंतु क्या ऐसे तरीक़े से उदर की तृप्ति भी हो सकती है?

    नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी और देखकर कह दिया, 'खीरा’ लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सक़ील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।'

    ज्ञान-चक्षु खुल गए! पहचाना—ये हैं नई कहानी के लेखक!

    खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से पेट भर जाने का डकार सकता है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के, लेखक की इच्छा मात्र से 'नई कहानी' क्यों नहीं बन सकती?

    स्रोत :
    • पुस्तक : क्षितिज (भाग-2) (पृष्ठ 62)
    • रचनाकार : यशपाल
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2022

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