वह एक छोटे-से शहर का बड़ा क्विज़मास्टर था। छोटा इसीलिए कि अभी भी इस शहर में अँग्रेज़ी में बात करने को ‘गिटिर पिटर करना’ कहा जाता था और अँग्रेज़ी बोलने वाले का मुँह भकर भकर देखा जाता था। हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में हर छोटे शहर की तरह कुछ बदलाव भी आए थे जिन्हें कुछ लोग ‘पॉज़िटिव चेंज़’ कहते थे और कुछ का मानना था कि ‘सब कुछ तेलहंडे में जा रहा है।’ एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री के नाम वाले कॉलेज की छात्राएँ बातचीत में ‘ओ शिट’ आदि का प्रयोग करने लगी थीं, शायद बिना शाब्दिक अर्थ समझे, वरना स्नानादि की भी नौबत आ सकती थी। हर बड़े बनते शहर की तरह यहाँ भी गणेश जी ने दूध पीने की कृपा की थी और इससे साबित हुआ था कि सूचना क्रांति ने अब यहाँ भी द्वार पर दस्तक दे दी। सूचनाओं के महत्व को इस शहर के लोग भी समझने लगे थे—ख़ासकर इंग्लिश मीडियम वाले स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माता पिता—और उसी स्कूल को शानदार और जानदार माना जाने लगा था जिसकी फीस हो तगड़ी और जहाँ क्विज़ कांपिटिशंस में बुद्धि जाती हो रगड़ी। ख़ैर साहब, तो कुछ ऐसे ही माहौल में उसने यकायक पाया कि उसका नाम शहर के एक प्रतिष्ठित क्विज़मास्टर के रूप में स्थापित हो चुका है। लोग कहते (विशेष रूप से उन स्कूलों, कॉलेजों के प्रिंसिपल साहिबान जिन्हें उसमें एक मुफ्त का क्विज़मास्टर नज़र आता था) कि उसकी अँग्रेज़ी की ‘फ्लूएंशी’ के सामने सिद्धार्थ बसु फेल है और उसकी अदाओं के सामने ओब्रायन भाई पानी भरेंगे और क्विज़ के बीच-बीच में पंच किए गए उसके विटी रिमार्क्स, चुटकुलों और सस्पेंस पैदा करने की उसकी क्षमता का तो कोई जोड़ ही नहीं है—’इस बार ज़रा पिछली बार से भी जोरदार शो हो, ख़र्चे की कोई फिकर नहीं, ज़रा बोर्ड के चेयरमैन आ रहे हैं और वीसी भी रहेंगे—हें...हें...हें...’ अपना एकमात्र सूट पहन कर एकमात्र टाई लगाए—’ए वेरी गुडी इवनिंग टु यू लेडिज़ एंड जेंटलमैन...’ फर्राटेदार अँग्रेज़ी, चुस्त-दुरुस्त उच्चारण...वर्षों के अभ्यास से बनाई हुई, साधी गई...और ‘क्विज़मास्टर्स डिसीजन इज फाइनल’ तक आते-आते तो गर्दन उसकी तन कर अकड़ जाती थी। लोगों की तालियों के बीच उसे लगने लगता कि बस उसकी बात ही ‘आख़िरी बात’ है। उस शहर के कार्यक्रमों के बीच में अचानक बिजली चली जाना, किराए के माइक में घरघराहट शुरू हो जाना जैसी दुर्घटनाएँ अक्सर होती थीं लेकिन ज़रा भी नहीं घबराता था वह।
अब उसी दिन की घटना लीजिए...झकाझक रोशनियों के बीच उसने कॉलेज में बस शुरू ही किया था कि भक्...बिजली गुल...अब कॉलेज के लड़के, शुरू हो गए।
हा! हा! खी! खी! हू! हू!
‘जाने दीजिए सर! तब तक कुछ गाना उना लगाइए’...तरह-तरह की फब्तियों के बीच उसने सँभाला माइक—‘गाना भी है मेरे पास दोस्तो।’ गनीमत थी कि माइक ठीक था—‘गाने के साथ साथ सवाल भी है आप आडिएंस के लिए कि सारा दिन सताते हो/रातों को जगाते हो/तुम याद बहुत आते हो...इस फ़िल्मी गाने