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दो पुरंदर चाप सुंदर
दो पुरंदर चाप सुंदर पावनी भ्रू बंकता।धौं निसाकर नीलघनयुत दिव्य लोचन लोलता॥
रमादेवी
वसंत-वर्णन (दो) : रामचरितमानस
सुखी मीन सब एक रस अति अगाध जल माहिं।जथा धर्म सीलन्ह के दिन सुख संजुत जाहिं॥
तुलसीदास
दोउ सुख झाँकै झरोषनि
दोउ सुख झाँकै झरोषनि अलियाँ।सैन किलोलत लोल रसिक मन मैन बढ़यो ज्यों रैन सुघुलियाँ॥
कृपानिवास
मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ
मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ।मोसौं कहत मोल कौ लीन्हौ, तू जसुमति कब जायौ?
सूरदास
रंग महल दोउ राजत रंग रसीले
रंग महल दोउ राजत रंग रसीले।लावन लंक अंकन की सानिधि भुज अंसनि गुन सीले॥
कृपानिवास
हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ
हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ।साराँ देखे लाज मराँ छाँ आवाँ किण जतनाँ॥
रसिकबिहारी
थान दे गोरिए बाला
थान दे गोरिए बाला, भाई बिन प्याले प्याला जी।गियांन की हाल्हीला पालंखू, गोरख बाला पौढ़ीला जी॥
गोरखनाथ
इंडुरिया तू डारि दै हौ
इंडुरिया तू डारि दै हौ लंगर ढीठ कन्हाई।तेरौ कोऊ कहौ करेगौ! हमें घर खीजेगी माई॥
चतुर्भुजदास
चार दिनां दी जिंदगी
चार दिनां दी जिंदगी, करलई खरच खुवार।इक दिन बाल पणे विच बीत्यो, दूजो विच मुटियार।
सैन भगत
आसण रमिता रांम दा
आसण रमिता रांम दा, इथां अबिगत आप वे।काया कासी वंजणां, हरि इथां पूजा जाप वे॥