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लता तू अनोखे ख्याल पर्यो है
अति आसक्ति भर्यो, नहि जानत, पुहुप प्रभाव कर्यो है।‘अलिबेली अलि' तृषित न मानत, किहि रस-रंग ढर्यो है॥
अलबेलीअलि
नाहि करब बर हर निरमोहिया
नाहि करब बर हर निरमोहिया।बित्ता भरि तन बसन न तिन्हका बघछल काँख तर रहिया॥
विद्यापति
शहंशाह बने हो तो आह सुनो दिनन की
के ‘निपट निरंजन', सुनो आलमगीर,ये गुन राजा में न हो लुच्चा वो मवाली है॥
निपट निरंजन
ऐसी प्रीति कहूँ नहि देखी
ऐसी प्रीति कहूँ नहि देखी।जसुमतिसुत वल्लभसुत जैसी सेस सहस मुख जात न लेखी॥
गोविंद स्वामी
प्यारे तू ही ब्रह्मा तू ही विष्नु
तू ही ऊँच तू ही नीच, तू ही है सबहिन के बीच,तू ही चंद तू ही दिनेस।
बैजू
हे री मैं तो प्रेम दिवानी
हे री मैं तो प्रेम दिवानी, मेरा दरद न जाने कोय।सूली ऊपर सेज हमारी, किस बिध सोना होय।
मीरा
काहू कौ बस नाहि तुम्हारी कृपा तें
स्वामी हरिदास
क्या करना है संतति-संपति
क्या करना है संतति-संपति, मिथ्या सब जग-माया है।शाल-दुशाले, हीरा-मोती में मन क्यों भरमाया है॥
ललितकिशोरी
है है उर्दू हाय
है है उर्दू हाय। कहां सिधारी हाय-हाय॥मेरी प्यारी हाय हाय। मुंशी मुल्ला हाय-हाय॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
तोको पीव मिलैंगे घूँघट के पट खोल रे
जोग जुगत से रंग-महल में, पिय पाई अनमोल रे।कहैं कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल रे॥
कबीर
हम नहिं आज रहब यहि आँगन
हम नहिं आज रहब यहि आँगन जो बुढ़ होएत जमाई, गे माई।एक त बइरि भेला बीध बिधाता दोसरे धिया कर बाप॥
विद्यापति
मन, तू पार उतर कहँ जैहौ
नहिं तहँ नीर, नाव नहि खेवट, ना गुन खैंचन हारा।धरनी-गगन-कल्प कछु नाहीं, ना कछु वार न पारा।
कबीर
तो सुन हो पंडता मेरी बात
तो निर्गुण ब्रह्म कु तुम नहीं ज्याने,तो काहे बखाने शास्त्र के माने।
केशवस्वामी
रात भर का है डेरा
माया मोह के चक्कर फंस्यो, यो तो देस बेगाना है।सैन कहे सद्मतया रेहवो, अंत अकेले जाना है॥
सैन भगत
प्रीतम, तुम तो दृगनि बसत हौ
प्रीतम, तुम तो दृगनि बसत हौ।कहा भरोसे ह्वै पूछत हौ, कै चतुराई करि जू हँसत हौ?