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सांभळ राव’र सांभळ राणा
कालंग मारां कुळ परचावां, निकळंक र नेजारा।गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथ (जी)
जसनाथ
मंगलाचरण (तीन)
सिरजसि पानि अठारा(र)ह सिरजसि अगनित मूरि।सिरजसि कत अगुरायनि (आकरायनि?) सबै रहा भरपूरि॥
मुल्ला दाउद
सुरनर कै'वै सही करमानो
सांभळ चन्दा सांभळ सूरज, सांभळ पौन र पाणी।नीर थकां नर थूळ रैयैला, जां री क्हो सहनाणी।
जसनाथ
गजरिपु ब्रत सराहन-योग
सकत आँख मिलाय नहिं थकि जकि बहादुर लोग।अभय डोलत ‘केशि’ मृगपति उर न धारत सोग॥
मंजुकेशी
लघु गुरु समझ धर रे
लघु गुरु समझ धर रे, ज्यौं कहे ग्रंथन गुरुन प्रमान।जेही लघु तेही गुरु, लघु गुरु विवेक अक्षर लख,
गोपाल
पिछवारें व्हे बोल सुनायो री
पिछवारें व्हे बोल सुनायो री ग्वालन। कमल नैन प्यारो करतकलेऊ कोर न मुखलों आयो।
परमानंद दास
मैया री मैं गाय चरावन जैहौं
मैया री मैं गाय चरावन जैहौं।तू कहि महर नंद बाबा सौं बड़ौ भयो न डरैहौं॥
परमानंद दास
पीव घरि आवे रे
पीव घरि आवे रे बेदन माह्नी जांणी रे।बिरह संतापै कवण परि कीजै कहूँ छूँ दुखनीं कहांणी रे॥
दादू दयाल
धीरे झूलो री राधा प्यारी जी
धीरे झूलो री राधा प्यारी जी।नवल रंगीली सबै झुलावत गावत सखियाँ सारी जी।
रसिकबिहारी
रे निरमोही, छबि दरसाय जा
रे निरमोही, छबि दरसाय जा।कान चातकी स्याम-बिरह-घन, मुरली मधुर सुनाय जा॥
ललितकिशोरी
जिय की साध जिय ही रही री
जिय की साध जिय ही रही री।बहुरि गोपाल देखन न पाए बिलपति कुंज अहीरी॥
परमानंद दास
रुम-झुम भरि आये री नयना तिहारे
रुम-झुम भरि आये री नयना तिहारे।बिथुरी सी अलकैं स्याम घन सी लागत,