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प्रभाकर भास्कर दिनकर दिवाकर
तानसेन
जिहिं कीनो परपंच सब
जिहिं कीनो परपंच सब अपनी इच्छा पाई।ताको हौं बंदन करौं हाथ जोरि सिर नाई॥
जसवंत सिंह
जागत भोरहि जोति स्वरूप
दिनकर दिन लायौ सब के प्रफुलन कौं, बढ़ि-बढ़ि कियौ अनंद॥जग-चक्षु जोति-प्रकाश, प्रतच्छ देव जगबंद।
बैजू
केलि-विलास (शिशिर)
शिशिरे सर्वरि वारुणे च विरहा मम हृदय विद्दारये।मा कांत मृगवध्ध सिंघ गमने किं देव उव्वारये॥
चंदबरदाई
भादों की राति अँधियारी
सोवत स्वान पहरुवा चहुँ दिसि खुले कपाट गई भौ न्यारी।पाछें सिंह डहारत दूकत आगे है कालिदी भारी॥
गोविंद स्वामी
देखा-देखी रसिक न ह्वैहै
देखा-देखी रसिक न ह्वैहै, रस-मारग है बंगा।कहा सिंह की सरवर करिहैं, गीदर फिरै जु रंका?