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जिहिं कीनो परपंच सब
जिहिं कीनो परपंच सब अपनी इच्छा पाई।ताको हौं बंदन करौं हाथ जोरि सिर नाई॥
जसवंत सिंह
गोस्वामी श्री तुलसीदास जी
कलि कुटिल जीव निस्तार हित बाल्मीकि तुलसी भयौ॥त्रेता काव्य निबंध करी सतकोटि रमायन।
नाभादास
केलि-विलास (शिशिर)
शिशिरे सर्वरि वारुणे च विरहा मम हृदय विद्दारये।मा कांत मृगवध्ध सिंघ गमने किं देव उव्वारये॥
चंदबरदाई
भादों की राति अँधियारी
सोवत स्वान पहरुवा चहुँ दिसि खुले कपाट गई भौ न्यारी।पाछें सिंह डहारत दूकत आगे है कालिदी भारी॥
गोविंद स्वामी
देखा-देखी रसिक न ह्वैहै
देखा-देखी रसिक न ह्वैहै, रस-मारग है बंगा।कहा सिंह की सरवर करिहैं, गीदर फिरै जु रंका?