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नाम में रूप, नाम में विद्या
बैजू
जगमग सिय मंडप में मंगल मचि
सोरह विधि शृंगार मदन मत में कहे।अनायास ते सिय अंगन में सजि रहे॥
हरिहर प्रसाद
बड़े खिरकि में घूमरि खेलत
बड़े खिरकि में घूमरि खेलत।मोहनलाल खिलावत रंग-भरि, गगन गरजि घंटा धुनि पेलत।
नंददास
सिय जू रानिन में महरानी
सिय जू रानिन में महरानी और सभै रौतानी।चितवत भौंह खड़ी कर जोरे इन्द्रानी ब्रह्मानी।
हरिहर प्रसाद
कोकिल अब क्यों मौन गही
अपने हाथ बहुरि कुसुमायुध फूल कमान गही।चटक चाँदनी निर्मल चंदा विरहिन अधिक दही॥
बालमुकुंद गुप्त
‘दया कुवरि’ या जक्त में
‘दया कुवरि’ या जक्त में, नहीं रह्यो फिर कोय।जैसे बास सराय की, तैसो यह जग होय॥
उर में घाव, रूप सों सैंकै
उर में घाव, रूप सों सैंकै, हित की सेज बिछावै।दृग-डोरे सुइर्या बर-बरुनी, टाँके ठीक लगावै।
सहचरिशरण
दुनिया के परपंचों में
दुनिया के परपंचों में हम मजा नहीं कुछ पाया जी।भाई-बंद, पिता-माता, पति सब सों चित अकुलाया जी॥
ललितकिशोरी
स्याम-रूप में तेज, अधर-रस
स्याम-रूप में तेज, अधर-रस जलहिं मिलाऊँ।मुरलि अकास मिलाय, प्रान में प्राननि छाऊँ॥
ललितकिशोरी
ब्रज में गोकुल-चंद बिराजैं
ब्रज में गोकुल-चंद बिराजैं।नन्ही-नन्ही बूंदनि बरसन लाग्यौ मंद-मंद घन गाजै॥
कुंभनदास
ब्रज में श्री विट्ठलनाथ बिराजैं
ब्रज में श्री विट्ठलनाथ बिराजैं।जाकौ परम मनोहर श्री मुख, देखत ही अघ भाजैं॥
छीतस्वामी
धरती में पानी बास करै
धरती में पानी बास करै।छमा करो तो प्रेम प्रकट हो, मरनी से करनी सुफल फरै॥