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'ब्राह्मण' पत्र की पाठकों से अपील (दो)
आठ मास बीते जजमान, अब तो करो दच्छिना दान।आजु काल्हि जौ रुपया देव, मानी कोटि यज्ञ करि लेव॥
प्रतापनारायण मिश्र
कबैं हरि कृपा करिहौ सुरति मेरी
दंभ के आरंभ ही सतसंगति डेरी। करैं क्यों ‘गदाधर’ बिन करुना तेरी॥
गदाधर भट्ट
जो मन स्याम-सरोवरि न्हाहि
जो मन स्याम-सरोवरि न्हाहि।बहुत दिनन कौ जर्यो-बर्यो तूं, तबहीं भले सिराहि॥
गदाधर भट्ट
जयति श्री राधिके सकल-सुख-साधिके
जयति श्री राधिके सकल-सुख-साधिके,तरुनि-मनि नित्य नवतन किसोरी।
गदाधर भट्ट
है हरि तें हरिनाम बड़ेरो
है हरि तें हरिनाम बड़ेरो, ताकों मूढ़ करत कत झेरो?प्रगट दरस मुचकुंदहि दीन्हों, ताहू आयुसु तो तप केरो॥
गदाधर भट्ट
नमो, नमो जय श्रीगोविंद
नमो, नमो जय श्रीगोविंद।आनंदमय ब्रज सरस सरोवर, प्रगटित विमल नील अरविंद॥
गदाधर भट्ट
झूलत नागरि नागर लाल
फरहराति पटपीत नील के, अंचल चंचल चाल।मनहुँ परस्पर उमँगि ध्यान-छबि, प्रगट भई तिहि काल॥
गदाधर भट्ट
कहाँ वे सुत नाती हय हाथी
जहाँ तहाँ निसिदिन विक्रम को भट्ट कहत बिरदत्त।सो सब बिसरि गये एकै रट, ‘राम नाम कहैं सत्त'॥
नागरीदास
ललन उठाय देहु मेरी गगरी
नंद कुमार कहे नेक ठाडी रही कछुक बात कर लीजै।परमानंद प्रभु संग मिले चलि बातन के रस भीजे॥
परमानंद दास
झूलत राधा-मोहन कालिंदी के कूल
झूलत राधा-मोहन कालिंदी के कूल।सघन-लता सुहावनी चहुं दिसि फूले फूल॥