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मधुकर! करहु और कछु बात
मधुकर! करहु और कछु बात।मोहन भये मधुपुरी-प्रीतम, तातें हमें न सुहात॥
गोस्वामी हरिराय
जमुना सी नाहिं कोऊ और दाता
जमुना सी नाहिं कोऊ और दाता।जेइ इनकी सरन जात हैं दौरि के ताहि कों तिहि छिनु करी सनाथा॥
गोविंद स्वामी
उर में माखन-चोर गड़े
को वसुदेव, देवकी है को, ना जानै औ बूझैं।सूर स्यामसुंदर बिनु देखे और न कोऊ सूझैं॥
सूरदास
उर में घाव, रूप सों सैंकै
उर में घाव, रूप सों सैंकै, हित की सेज बिछावै।दृग-डोरे सुइर्या बर-बरुनी, टाँके ठीक लगावै।
सहचरिशरण
पाहि-पाहि उर अंतरजामी
पाहि-पाहि, उर अंतरजामी, हरन अमंगल ही के।‘सहचरिसरन’ बिनय सुनि कीजै, बारिधि कृपा-अमी के।
सहचरिशरण
जरीदार पगरी उदार उर
जरीदार पगरी उदार उर, मुक्तमाल थहरति है।जरद लपेटा फेंटा कटि सों, गुरु गर्वीली गति है।
सहचरिशरण
अब तुम हमारी ओर निहारो
अब तुम हमारी ओर निहारो।हमारे अवगुण पै मति जावो तुमहीं अपनो विरुद सम्हारो॥
सहजोबाई
लसत चारु चहुँ ओर करणिका
लसत चारु चहुँ ओर करणिका अति छवि छाजै।तहँ सुंदर रघुवीर रसिक सिरमौर बिराजै॥
बाल अली
नाथ तुम अपनी ओर निहारो
नाथ तुम अपनी ओर निहारो।हमरी ओर न देखहु प्यारे निज गुन-गगन बिचारो॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
आवत ही जमुना भरि पानी
आवत ही जमुना भरि पानी॥स्याम रूप काहू कों ढोटा, बांकी-चितवन मेरी गैल भुलानी॥