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प्रभाकर भास्कर दिनकर दिवाकर
तानसेन
जिहिं कीनो परपंच सब
करुना करि पोसत सदा सकल सृष्टि के प्रान।ऐसे ईश्वर को हिये रहौं रैन-दिन ध्यान॥
जसवंत सिंह
भादों की राति अँधियारी
सोवत स्वान पहरुवा चहुँ दिसि खुले कपाट गई भौ न्यारी।पाछें सिंह डहारत दूकत आगे है कालिदी भारी॥
गोविंद स्वामी
हरि के नाम कौं आलस क्यों करत हैं रे
हरि के नाम कौं आलस क्यों करत हैं रे, काल फिरत सर साँधे।हीरा बहुत जवाहर संचे, कहा भयो हस्ती दर बाँधे॥
स्वामी हरिदास
जागत भोरहि जोति स्वरूप
दिनकर दिन लायौ सब के प्रफुलन कौं, बढ़ि-बढ़ि कियौ अनंद॥जग-चक्षु जोति-प्रकाश, प्रतच्छ देव जगबंद।
बैजू
केलि-विलास (शिशिर)
शिशिरे सर्वरि वारुणे च विरहा मम हृदय विद्दारये।मा कांत मृगवध्ध सिंघ गमने किं देव उव्वारये॥
चंदबरदाई
देखा-देखी रसिक न ह्वैहै
देखा-देखी रसिक न ह्वैहै, रस-मारग है बंगा।कहा सिंह की सरवर करिहैं, गीदर फिरै जु रंका?
चाचा हितवृंदावनदास
झूलत राधा-मोहन कालिंदी के कूल
झूलत राधा-मोहन कालिंदी के कूल।सघन-लता सुहावनी चहुं दिसि फूले फूल॥
नंददास
तरह-तरह के आसन करके
तरह-तरह के आसन करके दिलवर-ध्यान लगावैं हैं।भेदि सुषुम्ना नाड़ी-मारग माथे प्रान चढ़ावैं हैं॥
ललितकिशोरी
आये मेरे नंदनंदन के प्यारे
आये मेरे नंदनंदन के प्यारे।माला तिलक मनोहर बानो, त्रिभुवन के उँजियारे॥
परमानंद दास
विठ्ठलनाथ अनाथ के तारन
विठ्ठलनाथ अनाथ के तारन।श्रीवल्लभ-गृह प्रगट रूप यह धरयो भक्त हितकारन॥