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ओं तंते मंते जोत जगाई
ओं तंते मंते जोत जगाई, वाके वचने काया उपाई।मीठो थां सागर सोस्यो, खारो कियो थांही (छाई)।
जसनाथ
जागो भाई जागो रात अब थोरी
जागो भाई जागो रात अब थोरी।काल चोर नहिं करन चहत है जीवन धन की चोरी॥
प्रतापनारायण मिश्र
ओं बडोत सिंभू सिरजणहार
ओं बडोत सिंभू सिरजणहार, सर्वे रूप कियो विसतार।पाये धरती सीस गैणार, ता सिंभूनै निमस्कार।
जसनाथ
देखो भाई जादोपति नै कहा करी री
बख्तराम साह
ओं पैलां सिंभू आप उपन्ना
ओं पैलां सिंभू आप उपन्ना, जप रैया निरकारूं।जोग छत्तीसूं न्यारा रहिया, कुहाया एकैकारूं।
जसनाथ
बावरे के संग-साथ बावरी सी भई मैं
बावरे के संग-साथ बावरी सी भई मैं,बाप हू विवाह दीनीं बावरौ सौ जान कें।
बैजू
प्रगट भई सोभा त्रिभुवन की
प्रगट भई सोभा त्रिभुवन की भानु गोप के आइ।अद्भुत रूप देखि ब्रज बनिता रीझीं लेत बलाइ॥
सूरदास मदनमोहन
रोवहु सब मिलिं आवहु भारत भई
रोवहु सब मिलिं आवहु भारत भाई।हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
बिन गोपाल बैरनि भई कुंजैं
बिन गोपाल बैरिनि भई कुंजैं।तब ये लता लगति अति सीतल, अब भई विषम ज्वाल की पुंजैं॥
सूरदास
देखौ भाई, सुंदरता की सींवा
देखौ भाई, सुंदरता की सींवा।ब्रज-नव-तरुनि-कंदब-नागरी निरखि करति अध ग्रीवा॥
हितहरिवंश
कौन तप कींनों री भाई
"कोंन तप कींनों री भाई नंद-घरणी।लै उछंग हरिकूँ पय प्यावत, मुख चुंबन मुख भींनों री॥