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सिर धरे परवौवा मोर के
तेसेई फरहसत रंग भीने छवि पीतांबर छोर के।परमानंददास को ठाकुर हरत नेंन की कोर के॥
परमानंद दास
बैठे लाल कालिंदी के तीरा
सुंदर श्याम कमलदल लोचन पहेरें हैं पट पीरा।परमानंददास को ठाकुर लोचन भरत अधीरा॥
परमानंद दास
जोतू अब की बेर बन जाय
बैठे कुंज महल में मोहन सुंदर रूप सुहाय।परमानंददास को ठाकुर हंसि भेटेंगे धाय॥
परमानंद दास
अब डर कौन कौ रे भैया
नाचो गावो करो बधाई सुखैन चरावो गैया।परमानंददास कौ ठाकुर सब प्रकार सुख दैया॥
परमानंद दास
हरिजू को नाम सदा सुखदाता
जाके सरन गये भय नाहीं सकल बात को ज्ञाता।परमानंददास को ठाकुर संकर्षन को भ्राता॥
परमानंद दास
ब्रज सम और कोउ नहिं धाम
ब्रज-संबंधी नाम लेत ये, ब्रज की लीला गाव।‘नागरिदासहिं' मुरलीवारो, ब्रज कौ ठाकुर भाव॥
नागरीदास
लाल को मीठी खीर जो भावे
ब्रजनारी जो चहुं धो चितवत तन मन मोद बढ़ावे।परमानंददास को ठाकुर हंस हंस कंठ लगावे॥
परमानंद दास
गोविंद बार बार मुख जोवे
परमानंददास को ठाकुर करन भगत मन भाये।देखि दुखी है सुत कुबेर के लाल जू आप बंधाये॥
परमानंद दास
रावल में बाजत कहाँ बधाई
हर रखत लोग नगर के बासी भेट बहोत बिधि लावैं।परमानंददास को ठाकुर बानी सुनि गुन गावें॥
परमानंद दास
अदभुत देख्यो नंद भवन में
गावति हंसति हंसावति ग्वालिन झुलवति पकरि डला।परमानंददास को ठाकुर मोहन नंदलला॥
परमानंद दास
प्रगट भये हरि श्री गोकुल में
गृह गृह से गोपी सब निकसी कंचन थार धरे हाथन में।परमानंददास को ठाकुर प्रकटे नंद जसोदा के घर में॥
परमानंद दास
नवल कदंब छहतर ठाडे
नृत्यत गावत बेन बजावत सुरभि समूहन जाल।परमानंददास को ठाकुर लीला ललित गोपाल॥
परमानंद दास
माई री, हौ आनंद गुन गाऊँ
कहति जसोदा सखियनि आगे, हरि-उत्कर्ष जनावै।‘परमानंददास' कौ ठाकुर मुरलि मनोहर भावै॥
परमानंद दास
जेंमत नंद गोपाल खिजावत
ब्रजरानी बरजत गोपाल हरें हरें ढिंग आवत।परमानंददास को ठाकुर पूत बबा कों भावत॥