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षरज कहाँ से, रिषभ कहाँ से
गोपाल
इंदु से बदन, नैन खंजन से
इंदु से बदन, नैन खंजन से, कंठ कोकिल बचन सुहाई।नासा कीर, अधर विद्रुम, दाड़िम दसन दमकाई॥
तानसेन
रस रे निर्गुन राग से
रस रे निर्गुन राग से, गावै कोइ जाग्रत जोगी।अलग रहै संसार से, सो इस रस का भोगी॥
मलूकदास
मुँह से राम हय जी
मुँह से राम हय जी, उन घर क्या कम हय जी॥भजन पूजन तो कछु नहिं जाने, अजब करत है दुनिया।
मध्व मुनीश्वर
सजन से प्रीति मोहिं लागी
सजन से प्रीति मोहिं लागी, दरस को भयो अनुरागी।नहीं वैराग मोहिं आवै, साहेब के गुन नितै गावै।
धनी धरमदास
सदा ही नांव धणी से लीजे
सदा ही नांव धणी रो लीजे, किसड़ी वार सुवारो।नांव लियां भो पातक भाजै (झड़सी), सो कांई नांव विसारो।
जसनाथ
लागी हो गोविंदा से पिरती
लागी हो गोविंदा से पिरती।हृदय कमल में जब तक देखूं, परम सुंदर भरी श्याम की मूरती॥
केशवस्वामी
अब दिन रात्रि पहार से भये
अब दिन रात्रि पहार से भये।तब ते निघटत नाहिनि जब ते हरि मधुपुरी गये।
कुंभनदास
हम तुम पिया एक से दोऊ
हम तुम पिया एक से दोऊ।मानौ बिलग न नेक सांवरे घट बढ़िकै नहिं कोऊ॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
बावरे के संग-साथ बावरी सी भई मैं
बावरे के संग-साथ बावरी सी भई मैं,बाप हू विवाह दीनीं बावरौ सौ जान कें।
बैजू
सुरनर कै'वै सही करमानो
मेघनाद-सा बेटा उण रै, कुंभकरण-सा भाई।सो ही पुरखो उपड़ (उजड़) गयो रे, किसड़ी वार तुमारी।
जसनाथ
जमुना सी नाहिं कोऊ और दाता
जमुना सी नाहिं कोऊ और दाता।जेइ इनकी सरन जात हैं दौरि के ताहि कों तिहि छिनु करी सनाथा॥
गोविंद स्वामी
केलि-विलास (वसंत)
सामग्गं कलधूत नूत सिखरा मधुलेहि मधु वेष्टिता।वाते सीत सुगंध मंद सरसा आलोल सा चेष्टिता।
चंदबरदाई
मकर भूला माघ पिराणी
अंतेवर सा वासक नाग भणीजै, बांडकियां बे नागूं।एक ज टोळो हंसा टोळो, बुगलां टोळो बागूं।
जसनाथ
बधाई नंद बाबा दरबार
कृष्ण जनम सुन दरस लाल सा, नुपूर निठी झनकार।मंगल गान महल में हैर्यो, मुखड़ो मधुर निहार॥