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माधव, आप सदा के कोरे
माधव, आप सदा के कोरे।दीन-दुखी जो तुमको जाँचत, सो दाननि के भोरे॥
सत्यनारायण कविरत्न
सुण रे क़ाज़ी सुण रे मुल्ला
सुण रे क़ाज़ी सुण रे मुल्ला, सुणियो लोग लुगाई।नर निरहारी एकलवाई, जिन यो रा फरमाई॥
जांभोजी
चलौ री, मुरली सुनिये
चलौ री, मुरली सुनिये, कान्ह बजाई जमुनातीर।तजि लोक-लाज कुल की कानि गुरुजन की भीर॥
सूरदास मदनमोहन
जिय की साध जिय ही रही री
जिय की साध जिय ही रही री।बहुरि गोपाल देखन न पाए बिलपति कुंज अहीरी॥
परमानंद दास
पूरै गुरु री आलंग कर प्राणी
जसनाथ
कोई दिलवर की डगर बता दे रे
कोई दिलवर की डगर बता दे रे।लोचन कंज कुटिल भृकुटि कच, काननन कथा सुना दे रे॥
ललितकिशोरी
चलो री हेली होरी धूम मचावें
चलो री हेली होरी धूम मचावें।हेत-खेत बृंदाबन माहीं प्रीतम पकरि नचावें॥
ब्रजनिधि
गाय चरावन चले प्रभात
गाय चरावन चले प्रभात।कर गहि बेनु लकुटि करि बाँधें, पीतांबर फहरात॥
गोस्वामी हरिराय
अरी! चली दूलह देखनि जाय
अरी! चली दूलह देखनि जाय।सुंदर स्याम माधुरी मूरति, अंखियां निरखि सिरायं॥
नंददास
सुमरन प्रभुजी को करि रे प्रानी
सुमरन प्रभुजी को करि रे प्रानी।कौन भरोसे तू सोवै निसिदिन, अष्ट करम तेरे अरि रे॥
बख्तराम साह
तोको पीव मिलैंगे घूँघट के पट खोल रे
तोको पीव मिलैंगे घूँघट के पट खोल रे।घट घट में वही साँई रमता, कटुक बचन मत बोल रे।
कबीर
देखो भाई जादोपति नै कहा करी री
बखतराम प्रभु की गति हमको, जांनी क्यों हूँ न परी।जब चरनारविंद हूं निरखौं, सो ही सफल धरी॥
बख्तराम साह
हरिजस गावत चली ब्रज सुंदरी
तबतें चीर हरे नंदनंदन चढ़े कदंब की डारि।परमानंद प्रभुवर देवे को उद्यम कियो हे मुरारि॥
परमानंद दास
चलि राधे तोहि स्याम बुलावै
देखौ वृंदावन की सोभा ठौर ठौर द्रुम फूलें।कोकिल नाद सुनत मन आंनद मिथुन बिहंगम झूलें॥