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सब सँभाल म्याने लौंडे
आबल का तो पीछे नहीं, मुदल बिसर जाय।फिरते नहीं लाज रंडी, गधे गोते खाय॥
संत तुकाराम
होरी होरी कहि बोले सब ब्रज की नारि
होरी होरी कहि बोले सब ब्रज की नारि।नन्द गाँव बरसानो हिलि मिलि गावत इत उत रस की गारि
रसिकबिहारी
सुन सखी निठुर पप्पैया बोले
सुन सखी निठुर पप्पैया बोले।पिहु-पिहु कर पिय सूरत जनावे, मेरो प्राण पात जिहुं डोले॥
कुंभनदास
सिद्धार्थ के मन पर बाह्म जगत् का प्रभाव
बोलि उठ्यो सिद्धार्थ 'अहो! बनकुसुम मनोहर।जोहत कोमल खिले मुखन जो उदित प्रभाकर॥
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
बामन बलि को छलिगे मीत
मोहिं अचंभा लागत मैया, गावत भगवत-गीत।‘केशी’ रामधर्म की महिमा जानै का जन क्रीत॥
मंजुकेशी
श्री वल्लभनंदन की बलि जाऊं
श्री वल्लभनंदन की बलि जाऊं।जो गोवर्धन बसत निरंतर, गोकुल जिनकौ गाऊं॥
छीतस्वामी
प्यारी जू के तिल पर बलि बलिहारी
प्यारी जू के तिल पर बलि बलिहारी।जा मिस बसत कपोल न अनुछिन लघु बनि पिय गिरधारी॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
भली यह खेलिबे की बानि
ठोढ़ो देखत नंदजू की रानी, मूँदि कमल मुख पानि।‘परमाननंददास' जानत हैं, बोलि बूझि धौ आनि॥
परमानंद दास
भरत-राम का प्रेम (एन.सी. ई.आर.टी)
बंधु बोलि जेंइय जो भावै गई निछावरि मैया"कबहुँ समुझि वनगमन राम को रहि चकि चित्रलिखी सी।
तुलसीदास
सुंदर मुखकी हों बलि बलि जाऊं
सुंदर मुखकी हों बलि बलि जाऊं।लावन्यनिधि गुन निधि सभा निधि देख जीवत सब गाऊं॥
परमानंद दास
बलि जैहों श्री रसिकाचारज
बलि जैहों श्री रसिकाचारज।नित बिहार उद्धार कियो जिन, मथिकै हृदय-सिंधु वर बारज॥
भगवत रसिक
केसव! कहि न जाइ का कहिये
केसव! कहि न जाइ का कहिये।देखत तव रचना बिचित्र हरि! समुझि मनहिं मन रहिये॥
तुलसीदास
भादों की राति अँधियारी
बोलि लिये वसुदेव देवकी बालक भयो परम रुचिकारी।अब ले जाहु याहि तुम गोकुल अधम कंसकौ मोहि डरु भारी॥