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सोहंग बाळा हालरो नित निरमळ
नदी सुकता का घाट पर, बैठ्यो ध्यान लगाय।आवत देख्यो पींजरो, लियो कंठ लगाय॥
ब्रह्मगीर
पिय के पद कंचन-राती
पिय के पद कंचन-राती।विष्णु विरचि संभु सम पति में छिन-छिन प्रेम लगाती।
रानी रघुवंश कुमारी
पिय चलती बेरियाँ
तीर लगे निकसे नहीं, जब लौ प्रान न जाय॥जगन्नाथ के सिंधु में, डोंगी की गति होय।
रानी रघुवंश कुमारी
दुहुँ भाँतिन को मैं फल पायो
आनंदनिधि ब्रज-अनन्य-मंडली, उर लगाय अपनायो।सुनिवेहूँ को दुर्लभ सो सब, रस-बिलास दरसायो॥
नागरीदास
पौढ़ी पिय संग वृषभानु कुमारी
पौढ़ी पिय संग वृषभानु कुमारी।निरखि वदन छवि नंद नंदन के, लागि कंठ सौ प्रान-पियारी॥
छीतस्वामी
हरि हरि जप लेनी औसर बीतो जाय
यह जग बाजी साँच न जानो तामें मत भरमाय।कोई किसी का है नहीं बौरे नाहक लिये लगाय॥
सहजोबाई
धनि धनि वृंदावन वासी
या रस को जो मरम न जानै जाय बसौ सो कासी।भसम लगाय गरें लिंग बांधौ सदा रहौ उदासी॥
परमानंद दास
इंद्र हू की असवारी
बादरन की फ़ौजें छाईं बूँदन की तीरा कारी॥दामिनी की रंजक, तामैं ओले-गोले तोप छुटत,
बैजू
काँधैं कमरी गौ अलाप कैं नाचै
काँधैं कमरी गौ अलाप कैं नाचै जमुना तीर,नाचे पिछले पाँवर रे, गति लै-लै नाचे आँगनवा।
गोपाल
झूलै कुँवरि गोपराइन की
झूलै कुँवरि गोपराइन की। मधि राधा सुंदरि-सुकुमारि॥प्रथमहि रितु पावस आरम्भ। श्रीवृषभानु मँगाये खंभ॥
गदाधर भट्ट
मंगल आरति प्रिया प्रीतम की
जुगलप्रिया
ब्रज की नारी डोल झुलावैं
ब्रज की नारी डोल झुलावैं।सुख निरखत मन मैं सचु पावें मधुर-मधुर कल गावैं॥