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निदंक मारिये त्रास न कीजै
निदंक मारिये त्रास न कीजै।नाहिन दोष सुनहु नंदनंदन आपुन मधुपुरी लीजै॥
परमानंद दास
मानिनी ऐतो मान न कीजे
मानिनी ऐतो मान न कीजे।ये जोबन अंजलि की जल ज्यो जब गोपाल मांगे तब दीजै॥
परमानंद दास
सिला पखारों भोजन कीजे
सिला पखारों भोजन कीजे।नीके बिंजन बने कोंन के बांट बांट सबहिन कों दीजे॥
परमानंद दास
कलेऊ कीजै नंद-कुमार
कलेऊ कीजै नंद-कुमार।भई बड़ि बार जाहु जमुना-तट ठाढ़े सखा सब द्वार॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
प्रीत नंद नंदन सो कीजे
प्रीत नंद नंदन सो कीजे।संपत्ति विपत्ति परे प्रतिपाले कृपा करे सो जीजे॥
परमानंद दास
प्रीति तो काहूं नहिं कीजै
प्रीति तो काहूं नहिं कीजै।बिछुरै कठिन परै मेरो आली कहौ कैसे करि जीजै॥
परमानंद दास
महमद महमद न कर काजी
महमद महमद न कर काजी, महमद को तो विषम विचारूँ।महमद हाथ करद जो होती, लोहै घड़ी न सारूँ॥
जांभोजी
हित तौ कीजै कमलनैन सों
हित तौ कीजै कमलनैन सों, जा हित के आगे और हित लागै फीको।कै हित कीजै साधु-संगति सों, जावैं कलमष जी को॥
स्वामी हरिदास
सुण रे क़ाज़ी सुण रे मुल्ला
सुण रे क़ाज़ी सुण रे मुल्ला, सुणियो लोग लुगाई।नर निरहारी एकलवाई, जिन यो रा फरमाई॥
जांभोजी
पाघ न बांधां पिलंग न पोढ़ां
पाघ न बांधां पिलंग न पोढ़ां, इण खोटै संसारूं।अंजन छोड निरंजन ध्यावां, हुय ध्यावां हुसियारूं।
जसनाथ
जहि मण पवण ण संचरइ
जहि मण पवण ण संचरइ, रवि−ससि णाहिं पवेस॥तहि बढ चित्त विसाम करु, सरहें कहिअ उएस॥