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बसौ मेरे नैननि में दोऊ चंद
बसौ मेरे नैननि में दोऊ चंद।गौरबरनि वृषभानु-नंदनी, स्यामवरन नंद-नंद।
श्रीभट्ट
माल गल तुलसी दल की
माल गल तुलसी दल की नंदलाल लिए मुरली विहरें वन।प्रान पिया के हिया कौ हर हँसि होति सुखी ललितादि सखीगन॥
हरिचरणदास
मेरे मन के माने मोहनलाल
बखना
राम सुं राजी वो मेरा
रघुपति सुं नेह लागा, दिल का धोका सकल भागा।निरंजन के चरण कमल, अचल किया ज्यागा॥
केशवस्वामी
दरस बिन दूखन लागे नैन
बिरह बिथा कासों कहुँ सजनी, बह गई करवत ऐन।मीरां के प्रभु कबहो मिलोगे, दुःख मेटन सुख दैन॥
मीरा
मेरो मन सु पथिक मग भूल पर्यो री
बाल व्याल सखि ताल कपोलनि करन कंज मकरंद धर्यो री।भौंहें मधुप पाँति आवति शर खंजन मारग अटक पर्यो री॥
कृपानिवास
जंगल में अब रमते हैं
जंगल में अब रमते हैं, दिल बस्ती से घबराया है।मानुष गंध न भाती है, संग मरकट, मोर सुहाता है॥
ललितकिशोरी
दुनिया के परपंचों में
दुनिया के परपंचों में हम मजा नहीं कुछ पाया जी।भाई-बंद, पिता-माता, पति सब सों चित अकुलाया जी॥
ललितकिशोरी
नाम में रूप, नाम में विद्या
बैजू
राणाजी म्हें तो गोविंद का गुण गास्याँ
हरि मंदिर में निरत करास्याँ घुँघरियाँ घमकास्याँ।राम नाम का झाँझ चलास्याँ भव सागर तर जास्याँ॥
मीरा
दाग़ जो लागा लील का
चार पहर दिन होत रसोई, तनिक न निकसत टूक।कह मलूक ता दिल में, सदा रहते हैं भूत॥
मलूकदास
ब्रज की नारी डोल झुलावैं
ब्रज की नारी डोल झुलावैं।सुख निरखत मन मैं सचु पावें मधुर-मधुर कल गावैं॥