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दुनिया के परपंचों में
दुनिया के परपंचों में हम मजा नहीं कुछ पाया जी।भाई-बंद, पिता-माता, पति सब सों चित अकुलाया जी॥
ललितकिशोरी
नाम में रूप, नाम में विद्या
बैजू
वारों मीन खंजन आली के
सेत असित कटाछन तारे उपमा को मृग न कंजन।परमानंद प्रभु कर लीने प्यारी जु के मन के रंजन॥
परमानंद दास
श्री गोकुल में प्रगट बिराजै
छीतस्वामी
जगमग सिय मंडप में मंगल मचि
राम धरे धनुबाण सुरति सिय भौंहन में।औ सूरति सिय जू के नयन रिसोहन में॥
हरिहर प्रसाद
प्रगट भये हरि श्री गोकुल में
गृह गृह से गोपी सब निकसी कंचन थार धरे हाथन में।परमानंददास को ठाकुर प्रकटे नंद जसोदा के घर में॥
परमानंद दास
खेलन में को काको गुसैयाँ (एन.सी. ई.आर.टी)
खेलन में को काको गुसैयाँ।हरि हारे जीते श्रीदामा, बरबस हीं कत करत रिसैयाँ॥
सूरदास
बड़े खिरकि में घूमरि खेलत
बड़े खिरकि में घूमरि खेलत।मोहनलाल खिलावत रंग-भरि, गगन गरजि घंटा धुनि पेलत।
नंददास
सिय जू रानिन में महरानी
सिय जू रानिन में महरानी और सभै रौतानी।चितवत भौंह खड़ी कर जोरे इन्द्रानी ब्रह्मानी।
हरिहर प्रसाद
‘दया कुवरि’ या जक्त में
‘दया कुवरि’ या जक्त में, नहीं रह्यो फिर कोय।जैसे बास सराय की, तैसो यह जग होय॥
उर में घाव, रूप सों सैंकै
उर में घाव, रूप सों सैंकै, हित की सेज बिछावै।दृग-डोरे सुइर्या बर-बरुनी, टाँके ठीक लगावै।
सहचरिशरण
स्याम-रूप में तेज, अधर-रस
स्याम-रूप में तेज, अधर-रस जलहिं मिलाऊँ।मुरलि अकास मिलाय, प्रान में प्राननि छाऊँ॥