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प्रभु तेरी महिमा जानि न जाई
प्रभु तेरी महिमा जानि न जाई।नय विभाग बिन मोह मूढ जन मरत बहिर्मुख धाई॥
रूपचंद
तू तो प्रीति की रीति न जानै एरी गँवार
तू तो प्रीति की रीति न जानै एरी गँवार।जाकौ मन मिलाइ चित लीजे जासों और बहीये नार॥
गोविंद स्वामी
तू आदि भवानी जग जानी सर्वानी
तू आदि भवानी जग जानी सर्वानी, सर्व कला दै विद्या बरदानी।अंबे जगदंबे असुरसंहारनी तरनतारनी,
बैजू
पाघ न बांधां पिलंग न पोढ़ां
पाघ न बांधां पिलंग न पोढ़ां, इण खोटै संसारूं।अंजन छोड निरंजन ध्यावां, हुय ध्यावां हुसियारूं।
जसनाथ
ना वह रीझै जप तप कीन्हें
ना वह रीझै जप तप कीन्हें, ना आतम को जारे।ना वह रीझे धोती टांगे, ना काया के पखारे॥
मलूकदास
काँधैं कमरी गौ अलाप कैं नाचै
काँधैं कमरी गौ अलाप कैं नाचै जमुना तीर,नाचे पिछले पाँवर रे, गति लै-लै नाचे आँगनवा।
गोपाल
सुरंग दुरंग सोहत पाग लाल कैं
नंददास
हरि पथ चलहु न साँझ सबेरौ
कर्म फंद संबंध सबन सौं जन्म-जन्म कौ झेरौ।जानि बूझि अब होत कृपन अबहीं किन करहु निबेरौ॥
बिहारिनिदेव
वृंदावन रस काहि न भावै
वृंदावन रस काहि न भावै।बिटप वल्लरी हरी हरी त्यों गिरिवर जमुना क्यों न सुहावै॥
जुगलप्रिया
अरे इन दोहुन राह न पाई
दिल से नहीं लगाया, तब लग कैसा सनेह रे।अन्न न भावै नींद न आवै, गृह-बन धरै न धीर रे।
कबीर
गुमानी घन! काहे न बरसत पानी
गुमानी घन! काहे न बरसत पानी!सूखे सरोवर उड़ि गए हंसा, कमल बेलि कुम्हलानी॥
कुंभनदास
अब न सतावौ
होरी-सी जातीय प्रेम की फूँकि न धूरि उड़ावौ।जुग कर-जोरि यही ‘सत' माँगत, अलग न और लगावौ॥
सत्यनारायण कविरत्न
मनायो न मानें मेरौ हौं हारी
मनायो न मानें मेरौ हौं हारी।सिखवत-सिखवत जाम गये पें एकौ न विचारी॥