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हरि, तेरी लीला की सुधि आवै
हरि, तेरी लीला की सुधि आवै।कमल नैन मन-मोहनि मूरति, मन-मन चित्र बनावै॥
परमानंद दास
चार दिनां दी जिंदगी
चार दिनां दी जिंदगी, करलई खरच खुवार।इक दिन बाल पणे विच बीत्यो, दूजो विच मुटियार।
सैन भगत
प्रभु तेरी परमविचित्र
प्रभु तेरी परमविचित्र मनोहर मूरति रूप बनी।अंग-अंग की अनुपम सोभा, बरन न सकतु फनी॥
रूपचंद
लाल तेरी चितवन चितहि चुरावै
लाल तेरी चितवन चितहि चुरावै।नंदग्राम वृषभानपुरा बिच मारग चलन न पावै॥
कुंभनदास
मंगलाचरण (चार)
मुल्ला दाउद
पिय तेरी चितबन ही में टौना
पिय तेरी चितबन ही में टौना।तन-मन-धन बिसर्यौ जब ही तें, निरख्यौ वदन सलौना।
गोस्वामी हरिराय
प्रभु तेरी महिमा जानि न जाई
प्रभु तेरी महिमा जानि न जाई।नय विभाग बिन मोह मूढ जन मरत बहिर्मुख धाई॥
रूपचंद
चुटिया तेरी बड़ी किधौं मेरी
चुटिया तेरी बड़ी किधौं मेरी।अहो सुबल तुम बैठि भैया हो हम दोउ मापें एक बेरी॥
चतुर्भुजदास
यह कौन टेब तेरी कन्हैया
यह कौन टेब तेरी कन्हैया, जब तब मारग रोकै।कैसे के भरन जाँहि पनियाँ जुबति जन,
गोस्वामी हरिराय
दिन दिन होत कंचुकी गाढी
दिन दिन होत कंचुकी गाढी।सजल स्याम घन रति रस बरखत जोबन सरिता बाढ़ी॥
गोविंद स्वामी
भोगी के दिन अभ्यंग स्नान करि
स्त्री धन स्याम मनोहर मूरत करत बिहार नित ब्रज वृंदावन।परमानंददास को ठाकुर करत रंग निस दिन॥
परमानंद दास
की हम साँझक एक सरि तारा
की हम साँझक एक सरि तारा भादव चौठिक ससी।इथि दुहु माझ कोन मोर आनन जे पहु हेरसि न हँसी॥
विद्यापति
जा दिन कन्हैया मोसों
जा दिन कन्हैया मोसों मैया कहि बोलैगो।तादिन अति आनंद गिनोंरी माई रुनक झुनक ब्रज गलिन में डोलेगो॥
परमानंद दास
किते दिन बिन बृन्दाबन खोये
किते दिन बिन बृन्दाबन खोये।योहीं वृषा गये ते अबलौ, राजस-रंग समोये॥
नागरीदास
जा दिन प्रीत श्याम सो कीनी
चढ्यो रहत चित चाक सदाई यह विचार दिन जाय।मन में रहत चाह मिलन की ओर कछु न सुहाय॥
परमानंद दास
जसोदा, तेरे भाग्य की कही न जाय
जसोदा, तेरे भाग्य की कही न जाय।जो मूरति ब्रह्मादिक दुर्लभ सो प्रगटे हैं आय॥