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गुंजन मधुपन, सुनत अली री
गुंजन मधुपन, सुनत अली री।उमगी मनों प्रेम की सरिता, रूप के सिंधु चली री॥
अलबेलीअलि
लरिकाई को प्रेम कहौ अलि
लरिकाई को प्रेम, कहौ अलि, कैसे करिकै छूटत?कहा कहौं ब्रजनाथ-चरित अब अंतरगति यों लूटत॥
सूरदास
तुव मुख कमल नैन अलि मेरे
तुव मुख कमल नैन अलि मेरे।पलकन लगत पलक बिनु देखे, अरबरात अति फिरत न फेरे॥
भगवत रसिक
त्रिबली अमल अनंग
त्रिबली अमल अनंग सरित त्रय धार समानहिं।अकि छवि जलधि तरंग किधौं यौवन सोयं नहिं॥
बाल अली
सौरभ सुरंग सुठौनि लसत
सौरभ सुरंग सुठौनि लसत अंगुरी अस कर की।काम नृपति सर पंच कली किधौं नव केसरि की॥
बाल अली
अग्र सुमुक्त मंजु अधर
अग्र सुमुक्त मंजु अधर अमृत अधिकारी।मनहुँ प्रिया मन किंधौ कंज पर कवि छवि भारी॥
बाल अली
पलक मोहिनी पखा बाटि
पलक मोहिनी पखा बाटि मखतूल छोरहैं।प्राण प्रिया पर करत पवन जनु नव किसोर हैं॥
बाल अली
किये सपथ कहुँ तोहिं प्राणप्रिया
किये सपथ कहुँ तोहिं प्राणप्रिया निज हीय की।अस न अपन पौ मोहिं जैसे प्रिय तुम लगति हौ॥
बाल अली
लसत चारु चहुँ ओर करणिका
लसत चारु चहुँ ओर करणिका अति छवि छाजै।तहँ सुंदर रघुवीर रसिक सिरमौर बिराजै॥
बाल अली
पिय मिल करत बिलास
जंत्र जराय सिहाय शुकल हो हसत लजावसि हातुरी।जयति जानकी रवन केलि रस अलि निवास अलि आसुरी॥