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प्यारे बिन भर आये दोऊ नैन
प्यारे बिन भर आये दोऊ नैन।जब तैं स्याम गमन कियौ गोकुल तैं, नाँही परत री चैन॥
बैजू
आज कुहू की रात माधौ
आज कुहू की रात माधौ दीप मालिका मंगल चार।खेलौ द्यूत सहित संकर्षन मोहन मूरति नंदकुमार॥
परमानंद दास
पिय सों बातन बीती रात
पिय सों बातन बीती रात।वदन बिलोकत सखी स्याम कौ, भूलि गई सुधि गात॥
गोस्वामी हरिराय
जागो भाई जागो रात अब थोरी
जागो भाई जागो रात अब थोरी।काल चोर नहिं करन चहत है जीवन धन की चोरी॥
प्रतापनारायण मिश्र
अरे इन दोहुन राह न पाई
सब सखियाँ मिलि जेंवन बैठीं घर-भर करै बड़ाई।हिंदुन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई।
कबीर
अंत नी होय कोई आपणो
कोट कठिन गढ़ चढ़णा, दूर है रे पयाला।घड़ियाल बाजत पहेर का, दूर देश को जाणां॥
ब्रह्मगीर
नेह निगोड़े को पैंड़ो ही न्यारौ
नेह निगोड़े को पैंड़ो ही न्यारौ।जो कोइ होय कै आँधौ चलै, सु लहै प्रिय वस्तु चहूँधा उजारौ॥
वृन्दावनदेव
जसोदा, तेरे भाग्य की कही न जाय
सिव नारद सुक-सनकादिक मुनि मिलिबे को करत उपाय।ते नंदलाल धूरि-धूसरि वपु रहत गोद लपटाय॥
परमानंद दास
यों संसार फूल सेमर को
ख़ाली मुट्ठी आयो मूरख, कसतर बणज कमावे॥पुण्य कमाई करी न मासा, तोला भर ले जावे।
सैन भगत
ना वह रीझै जप तप कीन्हें
ना वह रीझै जप तप कीन्हें, ना आतम को जारे।ना वह रीझे धोती टांगे, ना काया के पखारे॥
मलूकदास
हरि पथ चलहु न साँझ सबेरौ
जुदिन सुदिन जीवै तूँ ह्वै रहि हरिदासन को चेरौ।‘बिहारीनदास’ बस तिन्हैं भरोसौ स्याम चरन रति केरौ॥
बिहारिनिदेव
बसौ यह सिय रघुबर को ध्यान
वहि रहस्य सुख रस को कैसे, जानि सकै अज्ञान।देवहुँ को जहँ मति पहुँचत नहिं, थकि गये वेद पुरान॥
हरिहर प्रसाद
जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहै
मूरी के पातन के केना को मुक्ताहल दैहै।सूरदास प्रभु गुनहि छाँड़ि कै को निर्गुन निबैहै?
सूरदास
पाघ न बांधां पिलंग न पोढ़ां
पाघ न बांधां पिलंग न पोढ़ां, इण खोटै संसारूं।अंजन छोड निरंजन ध्यावां, हुय ध्यावां हुसियारूं।