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घिरि घिरि घोर घमक घन धाए
घिरि घिरि घोर घमक घन धाए।बरसत बारि बड़ी बड़ी बूंदन बृज-मंडल पर छाए॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
हे घन स्याम, कहाँ घनस्याम
हे घन स्याम, कहाँ घनस्याम।रज मँडराति चरन-रज कित सों सीस धरैं अठजाम॥
सत्यनारायण कविरत्न
बंसी मेरी प्यारी
नहिं काम की तिहारी, दीजै आन आन आन।जाते करूँ मैं तेरौ री, गुन-गान गान गान॥
गोस्वामी हरिराय
गुमानी घन! काहे न बरसत पानी
गुमानी घन! काहे न बरसत पानी!सूखे सरोवर उड़ि गए हंसा, कमल बेलि कुम्हलानी॥
कुंभनदास
घन रहित नभ नील प्रगट्यो धौं
घन रहित नभ नील प्रगट्यो धौं सखी शृंगार है।रेख केसर की खरी भ्रूशीलता की भार है॥
रमादेवी
माई री, हौ आनंद गुन गाऊँ
माई री, हौ आनंद गुन गाऊँ।गोकुल की चिंतामनि माधो जो माँगौ सो पाऊँ॥
परमानंद दास
बणिक तूं बीणज भलो कर भाई
भवसागर मझधार भयंकर, कठिन पार गहराई।लोभ पाप को मूल चेतज्या, देख पाछै थरराई॥
रानाबाई
श्री गणेश वंदना
‘प्रीतम’ स्वतंत्र महामंत्र के प्रणेता, गण—तंत्र, औ गनेस दोऊ एक ही समान है॥
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
गौपालै देखन किन आई री
गोवर्द्धन-घरन-लाल गान सों बुलाई री।‘कृष्णदास' प्रभु सों मिलन जुवतिनि सुखदाई री॥
कृष्णदास
चरण शरण लियां कष्ट नसावै
असुर मेट थापी मरजादा, नुगरा जन थररावै।उदय अस्त रा भवै बायरा, भरमा भूत बतावै॥
रानाबाई
सब भांति छबीली कहांन की
नैन छबीले भ्रोंह छबीले सेज सुजान की।परमानंद प्रभु बने छबीले सुरन छबीली गान की॥
परमानंद दास
चतुरभुज झुलत श्याम हिंडोरे
बाजत बीन पखावज बंशी गान होते चहुँ ओरें।जामसुता छबि निरखि अनोखी वारूँ काम किरोरें॥
प्रतापबाला
मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ
मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ।मोसौं कहत मोल कौ लीन्हौ, तू जसुमति कब जायौ?