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मकर भूला माघ पिराणी
काचो कांधो गळमळ जासी, विसर जासी राजूं।गजमल घड़िया बाजा बाजै, लोह जड़ाया चाम मंढ़ाया
जसनाथ
दुनिया के परपंचों में
दुनिया के परपंचों में हम मजा नहीं कुछ पाया जी।भाई-बंद, पिता-माता, पति सब सों चित अकुलाया जी॥
ललितकिशोरी
नाम में रूप, नाम में विद्या
बैजू
करौं मन! हरि भक्तन कौ संग
ध्रुव, प्रह्लाद, बिभीषन, कपिपति कामी मरकट अंग।पूज्य भये जस पाय जगत में जीत्यौ रावन जंग॥
किशोरीदास
मैं तो खेलूं प्रभु के संग
मैं तो खेलूं प्रभु के संग होरी रंगभरी।जित देखूं तित रम रहौ रे सबमें व्यापक है हरी॥
सहजोबाई
बावरे के संग-साथ बावरी सी भई मैं
बावरे के संग-साथ बावरी सी भई मैं,बाप हू विवाह दीनीं बावरौ सौ जान कें।
बैजू
राधा निसि हरि के संग जागी
राधा निसि हरि के संग जागी।जमुना पुलिन सघन कुंजनि में, पिय अंग-अंग मिलि कै अनुरागी॥
छीतस्वामी
मैं तो साँवरे संग खेलन जैहौं
गोपाल
खेलन में को काको गुसैयाँ (एन.सी. ई.आर.टी)
खेलन में को काको गुसैयाँ।हरि हारे जीते श्रीदामा, बरबस हीं कत करत रिसैयाँ॥
सूरदास
जगमग सिय मंडप में मंगल मचि
देव नजरि जहँ हार तिनहँ का ताम की।चूक सुधारहिं सज्जन पतित गुलाम की॥
हरिहर प्रसाद
बड़े खिरकि में घूमरि खेलत
बड़े खिरकि में घूमरि खेलत।मोहनलाल खिलावत रंग-भरि, गगन गरजि घंटा धुनि पेलत।
नंददास
सिय जू रानिन में महरानी
सिय जू रानिन में महरानी और सभै रौतानी।चितवत भौंह खड़ी कर जोरे इन्द्रानी ब्रह्मानी।
हरिहर प्रसाद
‘दया कुवरि’ या जक्त में
‘दया कुवरि’ या जक्त में, नहीं रह्यो फिर कोय।जैसे बास सराय की, तैसो यह जग होय॥