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कौन रसिक है इन बातन कौ
कौन रसिक है इन बातन कौ।नंद-नंदन बिनु कासों कहिए, सुनि री सखी, मेरे दुखिया मन कौ॥
परमानंद दास
पिय सों बातन बीती रात
तब तें मोहि न भावै री कछु, कही-सुनी न सुहात।‘रसिक प्रीतम’ के सुख की सुधि मोहि, क्यों हू नाँ बिसरात॥
गोस्वामी हरिराय
मेरे मन के माने मोहनलाल
बखना
राणाजी म्हें तो गोविंद का गुण गास्याँ
यह संसार बाड़ का काँटा ज्याँ संगत नहिं जास्याँ।मीरा के प्रभु गिरधर नागर निरख परख गुण गास्याँ॥
मीरा
केसव! कहि न जाइ का कहिये
केसव! कहि न जाइ का कहिये।देखत तव रचना बिचित्र हरि! समुझि मनहिं मन रहिये॥
तुलसीदास
झूलत राधा-मोहन कालिंदी के कूल
झूलत राधा-मोहन कालिंदी के कूल।सघन-लता सुहावनी चहुं दिसि फूले फूल॥
नंददास
तरह-तरह के आसन करके
तरह-तरह के आसन करके दिलवर-ध्यान लगावैं हैं।भेदि सुषुम्ना नाड़ी-मारग माथे प्रान चढ़ावैं हैं॥
ललितकिशोरी
सिद्धार्थ के मन पर बाह्म जगत् का प्रभाव
बोलि उठ्यो सिद्धार्थ 'अहो! बनकुसुम मनोहर।जोहत कोमल खिले मुखन जो उदित प्रभाकर॥
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
या जोबन को लै का करिहों
या जोबन को लै का करिहों?चिर दिन याही भाँति हाय कह विरहानल महं जरिहों॥