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नाथ तुम अपनी ओर निहारो
नाथ तुम अपनी ओर निहारो।हमरी ओर न देखहु प्यारे निज गुन-गगन बिचारो॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
हम मौजी हैं अपने मन के
हम मौजी हैं अपने मन के, मनचाहै तहँ जावैं हैं।बैठि इकंत ध्यान धरि दिलवर कंद मूल-फल खावैं हैं॥
ललितकिशोरी
खेलत गिरिधर रंग मंगे रंग
बाजत ताल मृदंग झांझ डफ मुरली मुरज उपंग।अपनी अपनी फेंटन भरि भरि लिये गुलाल सुरंग॥
परमानंद दास
अब न सतावौ
साँची तुमहिं सुनावत जो हम, चौंकत सकल समाज।आपनी जाँघ उघारै उघरति, बस, अपनी ही लाज॥
सत्यनारायण कविरत्न
सूरता अपुनी सबै डुलाई
सूरता अपुनी सबै डुलाई।हमसे महा हीन किंकर सो करि कै नाथ लराई॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
माई री, कमलनैन स्यामसुंदर
अँगुठा गहि कमलपानि मेलत मुख माहीं।अपनी प्रतिबिंब देखि पुनि-पुनि मुसुकाहीं॥
परमानंद दास
व्याकरणाचार्य
कलयुगदास कहे कर जोरे, यह सिद्धांत हमारा।अपनी आप गायके महिमा, हो भवसागर पारा।
बालमुकुंद गुप्त
बाबा मन का है सिर तले
जिभ्या कारन खून कीये, बांधि जमपुर चले॥राम जो सों भये बेंमुख, अगिन अपनी जले॥
मलूकदास
चुटिया तेरी बड़ी किधौं मेरी
लै तिनका मापत उनकी कछु अपनी करत बडेरी।लै करकमल दिखावत ग्वालनि ऐसी न काहू केरी॥
चतुर्भुजदास
मनावत हार परी माई
राजकुमारी होय सो जाने के गुरु सीख सिखाई।नंद नंदन कौ छांडि महातम अपनी रार बढ़ाई।
परमानंद दास
मैं तुव पदतर-रेनु, रसीली
कोटहहु पानबारने करिकै उरिन न तोसों प्रीत-रगीली।अपनी प्रेम-छटा करुना करि, दीजै दीनदयाल छबीली॥