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क्या करना है संतति-संपति
क्या करना है संतति-संपति, मिथ्या सब जग-माया है।शाल-दुशाले, हीरा-मोती में मन क्यों भरमाया है॥
ललितकिशोरी
इन में क्या लीजै क्या दीजै
इन में क्या लीजै क्या दीजै, जनम अमोलिक छीजै॥सोवत सुपना होई, जागे थैं नहिं कोई।
दादू दयाल
क्या तुम देखते हो बाज़ीगिरी का तमाशा
क्या तुम देखते हो बाज़ीगिरी का तमाशा।हाथी घोड़े माल कबीला, कोई न किसका साथी।
मध्व मुनीश्वर
देखो भाई जादोपति नै कहा करी री
बख्तराम साह
सारी मेरी भीजत है जु नई
अपनो पीतांबर मोहि उढ़ावो बरखा उदित भई।सुंदर स्याम जायगो यह रंग बहु विध चित्र ठई॥
कुंभनदास
रात भर का है डेरा
ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा है, सवेरे उठकर जाना है।रात भर का है डेरा, सवेरे जाना है॥
सैन भगत
नेह निगोड़े को पैंड़ो ही न्यारौ
वृन्दावनदेव
पिय तोहि नैनन ही में राखूँ
पिय तोहि नैनन ही में राखूँ।तेरी एक रोम की छबि पर, जगत वारि सब नाखूँ॥
गोस्वामी हरिराय
पाघ न बांधां पिलंग न पोढ़ां
पाघ न बांधां पिलंग न पोढ़ां, इण खोटै संसारूं।अंजन छोड निरंजन ध्यावां, हुय ध्यावां हुसियारूं।
जसनाथ
जसोदा, तेरे भाग्य की कही न जाय
जसोदा, तेरे भाग्य की कही न जाय।जो मूरति ब्रह्मादिक दुर्लभ सो प्रगटे हैं आय॥
परमानंद दास
ना वह रीझै जप तप कीन्हें
ना वह रीझै जप तप कीन्हें, ना आतम को जारे।ना वह रीझे धोती टांगे, ना काया के पखारे॥
मलूकदास
जिय की साध जिय ही रही री
जिय की साध जिय ही रही री।बहुरि गोपाल देखन न पाए बिलपति कुंज अहीरी॥
परमानंद दास
अंत नी होय कोई आपणो
कोट कठिन गढ़ चढ़णा, दूर है रे पयाला।घड़ियाल बाजत पहेर का, दूर देश को जाणां॥