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पिय तोहि नैनन ही में राखूँ
पिय तोहि नैनन ही में राखूँ।तेरी एक रोम की छबि पर, जगत वारि सब नाखूँ॥
गोस्वामी हरिराय
चलि राधे तोहि स्याम बुलावै
चलि राधे तोहि स्याम बुलावै।वह सुनि देखि वैनु मधुरे सुर तेरो नाम हि लै लै गावें॥
परमानंद दास
लाड़िले बोलत है तोहि मैया
लाड़िले बोलत है तोहि मैया।संझा समे संग आवत चुंबन लेकर गोद बिठैया॥
परमानंद दास
व्याकरणाचार्य
कुछ सीखे थे बाबा साहब, कुछ जाने थे नाना।पूरा इसे आप सब जानो, बंदे ही ने जाना॥
बालमुकुंद गुप्त
ओ लाल थाने फाग खिलाऊं
थे गायां का ग्वालियाजी, राधा-राजकुमार।थारी मारी कियां बराबरी, ‘राना' कहै ललकार॥
रानाबाई
सदा ही नांव धणी से लीजे
वरण वरो जे तरण तिरो थे, हिंडोलै हिलकारोजोड़ तळाई किन्या संकळपो, सुरगां जावणहारो।
जसनाथ
स्याही धोती पुरख पचाधा
साध घटैला मेछ वधैला, एको वाईंदो वावैला।थे मत जाणो मील गुमावै, सुरनर लेखै लावैला।
जसनाथ
पद-67
गेंदे के कुछ फूल खिले थे, मटके में कुछ पानीचिड़ियों की आवाजाही थी, अपनी चानी, चानी
अष्टभुजा शुक्ल
कोट कसूता सरवे ऊजड़
थे मत जाणो रूळि फिरै है, चांदो सूरज गिंवाळी।विरियां कुविरियां भूखा काढ्या, तो धरम कठै सूं आई।
जसनाथ
ओं आप ही आप आप उपन्ना
निरत नारायण, सुरत सहदेव, भणै भणै हियाळी हंसदेव।जो थे मन मन करस्यो माड, तो सुरग मंडळिये हुयसी लाड।
जसनाथ
द्वापर वरत्यो कळजुग आयो
जसनाथ
ओं तंते मंते जोत जगाई
जसनाथ
सतजुग वरत्यो त्रेता आयो
थे उण राजा री करणी हालो, जो मत पार लंघो मोरा भाई।सो गुरु सदा सिंवर ओ प्राणी, (जिण) थारी उमत आव उपाई।