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केलि-विलास (शिशिर)
रोमाली वन नीर निघ्घ वरये गिरि डंग नारायते।पव्वय पीन कुचानि जानि सयला फुंकार झुंकारये।
चंदबरदाई
जगमग सिय मंडप में मंगल मचि
आपुहि मह-मह महकत सिय जु को अंग है।गंध लगावनि हारि मनहिं में दंग है॥
हरिहर प्रसाद
पूरै गुरु री आलंग कर प्राणी
पैली करतो डांग पटेली, अब क्यूं बैठ्यो आय दड़ै।जीवंतड़ै जळ सार न जाण्यो, अब कांई न्हावै मुवै मंडै।
जसनाथ
दिन दिन होत कंचुकी गाढी
दिन दिन होत कंचुकी गाढी।सजल स्याम घन रति रस बरखत जोबन सरिता बाढ़ी॥
गोविंद स्वामी
कब दान दीनौ कब दान लीनों
कब दान दीनौ कब दान लीनों अहो ब्रजराज दुहाई।इह मारग हम सदाई आवति जाति अब कछू नई ये चलाई॥
गोविंद स्वामी
यह तन इक दिन होय जु छारा
यह तन इक दिन होय जु छारा।नाम, निशान न रहि है रंचहु भूलि जायगो सब संसारा।
जुगलप्रिया
जा दिन कन्हैया मोसों
जा दिन कन्हैया मोसों मैया कहि बोलैगो।तादिन अति आनंद गिनोंरी माई रुनक झुनक ब्रज गलिन में डोलेगो॥
परमानंद दास
किते दिन बिन बृन्दाबन खोये
किते दिन बिन बृन्दाबन खोये।योहीं वृषा गये ते अबलौ, राजस-रंग समोये॥
नागरीदास
कहो किनिकीनों दान दही कौ
कहो किनि कीनों दान दही कौ।सदा सर्वदा बेचति इहिं ब्रज है मारग नित हीकौ॥
चतुर्भुजदास
दीप-दान दै स्याम मनोहर
दीप-दान दै स्याम मनोहर सब गाइनि के कान जगावत।गांग बुलाई धूमरि धौरी ऊंचे लै-लै नाउँ बुलावत॥
चतुर्भुजदास
केते दिन भये रैनि सुख सोये
केते दिन भये रैनि सुख सोये।कछु न सुहाई गोपालहि बिछुरे रहे पूंजी सो खोये॥
परमानंद दास
जा दिन प्रीत श्याम सो कीनी
जा दिन प्रीत श्याम सो कीनी।ता दिनतें मेरी अंखियन में नेकहूं नींद न लीनी॥
परमानंद दास
अब दिन रात्रि पहार से भये
अब दिन रात्रि पहार से भये।तब ते निघटत नाहिनि जब ते हरि मधुपुरी गये।