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क्या करना है संतति-संपति
क्या करना है संतति-संपति, मिथ्या सब जग-माया है।शाल-दुशाले, हीरा-मोती में मन क्यों भरमाया है॥
ललितकिशोरी
इण जिवड़े रै कारणे
इण जिवड़े रै कारणे, हरि हर नांव चितारे।ओ धन तो है ढळती छाया, ज्यूं धूवैं री धारे।
जसनाथ
इन में क्या लीजै क्या दीजै
इन में क्या लीजै क्या दीजै, जनम अमोलिक छीजै॥सोवत सुपना होई, जागे थैं नहिं कोई।
दादू दयाल
क्या तुम देखते हो बाज़ीगिरी का तमाशा
क्या तुम देखते हो बाज़ीगिरी का तमाशा।हाथी घोड़े माल कबीला, कोई न किसका साथी।
मध्व मुनीश्वर
षरज कहाँ से, रिषभ कहाँ से
गोपाल
इतने गुन जामें सो संत
सहनसील, आसय उदार अति, धीरज-सहित विवेकी।सत्य बचन सब कों सुखदायक, गहि अनन्य-व्रत एकी॥
भगवत रसिक
इंदु से बदन, नैन खंजन से
इंदु से बदन, नैन खंजन से, कंठ कोकिल बचन सुहाई।नासा कीर, अधर विद्रुम, दाड़िम दसन दमकाई॥
तानसेन
मुँह से राम हय जी
मुँह से राम हय जी, उन घर क्या कम हय जी॥भजन पूजन तो कछु नहिं जाने, अजब करत है दुनिया।
मध्व मुनीश्वर
रस रे निर्गुन राग से
रस रे निर्गुन राग से, गावै कोइ जाग्रत जोगी।अलग रहै संसार से, सो इस रस का भोगी॥
मलूकदास
धरती में पानी बास करै
धरती में पानी बास करै।छमा करो तो प्रेम प्रकट हो, मरनी से करनी सुफल फरै॥
मंजुकेशी
राम-सुमिरन करना ही रे बाबा
केशवस्वामी
सदा ही नांव धणी से लीजे
सदा ही नांव धणी रो लीजे, किसड़ी वार सुवारो।नांव लियां भो पातक भाजै (झड़सी), सो कांई नांव विसारो।