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जंगल में अब रमते हैं
जंगल में अब रमते हैं, दिल बस्ती से घबराया है।मानुष गंध न भाती है, संग मरकट, मोर सुहाता है॥
ललितकिशोरी
कोई दिलवर की डगर बता दे रे
कोई दिलवर की डगर बता दे रे।लोचन कंज कुटिल भृकुटि कच, काननन कथा सुना दे रे॥
ललितकिशोरी
'ब्राह्मण' पत्र की पाठकों से अपील (दो)
आठ मास बीते जजमान, अब तो करो दच्छिना दान।आजु काल्हि जौ रुपया देव, मानी कोटि यज्ञ करि लेव॥
प्रतापनारायण मिश्र
सिखवत-सिखवत बीती अब रतिया
सिखवत-सिखवत बीती अब रतिया।कोटि कही एको न कानकरी हुदै गांठि तेरे, भेदति बतियां॥
चतुर्भुजदास
जागो भाई जागो रात अब थोरी
जागो भाई जागो रात अब थोरी।काल चोर नहिं करन चहत है जीवन धन की चोरी॥
प्रतापनारायण मिश्र
नाहि करब बर हर निरमोहिया
नाहि करब बर हर निरमोहिया।बित्ता भरि तन बसन न तिन्हका बघछल काँख तर रहिया॥
विद्यापति
है है उर्दू हाय
है है उर्दू हाय। कहां सिधारी हाय-हाय॥मेरी प्यारी हाय हाय। मुंशी मुल्ला हाय-हाय॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ऐसी प्रीति कहूँ नहि देखी
ऐसी प्रीति कहूँ नहि देखी।जसुमतिसुत वल्लभसुत जैसी सेस सहस मुख जात न लेखी॥
गोविंद स्वामी
होरी लागी कान्ह, अब ही तैं उमदात फिरौ
होरी लागी कान्ह, अब ही तैं उमदात फिरौ,जरै ऐसौ ख्याल, जी में लाज टर जायगी।
गोपाल
अब हौं माया-हाथ बिकानौ
अपने हीं अज्ञान-तिमिर मैं, बिसर्यौ परम ठिकानौ।सूरदास की एक आँखि है, ताहू मैं कछु कानौ॥