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साहेब कौन कमी घर तेरा
जो कुछ न्यामत सवै महल में, लरच खजाना ढेरो॥ख़ाक से पाक कियो पल माहीं, है समरथ तेरो।
धनी धरमदास
नात होती लराई दृगन में
नात होती लराई दृगन में, लाजहि बीच परी।घूँघट पट मेरौ सरकायौ, मुरली अधर धरी॥
गोस्वामी हरिराय
पिय तेरी चितबन ही में टौना
पिय तेरी चितबन ही में टौना।तन-मन-धन बिसर्यौ जब ही तें, निरख्यौ वदन सलौना।
गोस्वामी हरिराय
पिय तोहि नैनन ही में राखूँ
पिय तोहि नैनन ही में राखूँ।तेरी एक रोम की छबि पर, जगत वारि सब नाखूँ॥
गोस्वामी हरिराय
नाम में रूप, नाम में विद्या
बैजू
जगमग सिय मंडप में मंगल मचि
आपुहि मह-मह महकत सिय जु को अंग है।गंध लगावनि हारि मनहिं में दंग है॥
हरिहर प्रसाद
जंगल में अब रमते हैं
जंगल में अब रमते हैं, दिल बस्ती से घबराया है।मानुष गंध न भाती है, संग मरकट, मोर सुहाता है॥
ललितकिशोरी
है है उर्दू हाय
है है उर्दू हाय। कहां सिधारी हाय-हाय॥मेरी प्यारी हाय हाय। मुंशी मुल्ला हाय-हाय॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
श्री गोकुल में प्रगट बिराजै
छीतस्वामी
आवत मोहन मन जु हर्यो है
आवत मोहन मन जु हर्यो है।हौं गृह अपने सचु सो बैठी, निरखि बदन सर्वसु बिसर्यो है॥
कुंभनदास
रंग-भवन में रात्रि
जा में है नवेलिन की निखरी निकाई अंग,अगन की बसन गए हैं कहूँ नेकु टरि।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
तुझ पर बारी हो अणघड़िया देवा
दस औतार औतरिया तरिया, वै पणि राम न होई।कमाई अपनी उनहूँ पाई, करता औरै कोई॥
गोरखनाथ
बड़े खिरकि में घूमरि खेलत
बड़े खिरकि में घूमरि खेलत।मोहनलाल खिलावत रंग-भरि, गगन गरजि घंटा धुनि पेलत।
नंददास
सिय जू रानिन में महरानी
सिय जू रानिन में महरानी और सभै रौतानी।चितवत भौंह खड़ी कर जोरे इन्द्रानी ब्रह्मानी।