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नाहि करब बर हर निरमोहिया
नाहि करब बर हर निरमोहिया।बित्ता भरि तन बसन न तिन्हका बघछल काँख तर रहिया॥
विद्यापति
ऐसी प्रीति कहूँ नहि देखी
ऐसी प्रीति कहूँ नहि देखी।जसुमतिसुत वल्लभसुत जैसी सेस सहस मुख जात न लेखी॥
गोविंद स्वामी
मैं तो खेलूं प्रभु के संग
सब कुछ भयो दयो सुख जनको अद्धुत लीला करी।नाना जतन किये मिलबे के प्रीतम पाए हम घरी॥
सहजोबाई
लाड़िले बोलत है तोहि मैया
लाड़िले बोलत है तोहि मैया।संझा समे संग आवत चुंबन लेकर गोद बिठैया॥
परमानंद दास
काहू कौ बस नाहि तुम्हारी कृपा तें
स्वामी हरिदास
लता तू अनोखे ख्याल पर्यो है
अति आसक्ति भर्यो, नहि जानत, पुहुप प्रभाव कर्यो है।‘अलिबेली अलि' तृषित न मानत, किहि रस-रंग ढर्यो है॥
अलबेलीअलि
हम नहिं आज रहब यहि आँगन
हम नहिं आज रहब यहि आँगन जो बुढ़ होएत जमाई, गे माई।एक त बइरि भेला बीध बिधाता दोसरे धिया कर बाप॥
विद्यापति
हे री मैं तो प्रेम दिवानी
हे री मैं तो प्रेम दिवानी, मेरा दरद न जाने कोय।सूली ऊपर सेज हमारी, किस बिध सोना होय।
मीरा
शहंशाह बने हो तो आह सुनो दिनन की
शहंशाह बने हो तो आह सुनो दिनन की,बानी मरदानी बचन जावे खाली है।
निपट निरंजन
तो सुन हो पंडता मेरी बात
तो निर्गुण ब्रह्म कु तुम नहीं ज्याने,तो काहे बखाने शास्त्र के माने।
केशवस्वामी
प्यारे तू ही ब्रह्मा तू ही विष्नु
तू ही ऊँच तू ही नीच, तू ही है सबहिन के बीच,तू ही चंद तू ही दिनेस।
बैजू
पद-82
सबके पौ बारह हों लेकिन कुछ ननु नच कुछ अगर मगर मेंआँसू की बिक्री का कोई नया महकमा खुले नज़र में
अष्टभुजा शुक्ल
प्रीतम, तुम तो दृगनि बसत हौ
प्रीतम, तुम तो दृगनि बसत हौ।कहा भरोसे ह्वै पूछत हौ, कै चतुराई करि जू हँसत हौ?
चाचा हितवृंदावनदास
जागो भाई जागो रात अब थोरी
जागो भाई जागो रात अब थोरी।काल चोर नहिं करन चहत है जीवन धन की चोरी॥
प्रतापनारायण मिश्र
प्रीति तो काहूं नहिं कीजै
प्रीति तो काहूं नहिं कीजै।बिछुरै कठिन परै मेरो आली कहौ कैसे करि जीजै॥
परमानंद दास
जो गिरि रुचे तो बसो श्री गोवर्द्धन
नंददास
मैया, मैं तो चंद−खिलौना लैहौं
मैया, मैं तो चंद-खिलौना लैहौं।जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥
सूरदास
मन, तू पार उतर कहँ जैहौ
नहिं तहँ नीर, नाव नहि खेवट, ना गुन खैंचन हारा।धरनी-गगन-कल्प कछु नाहीं, ना कछु वार न पारा।