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झूलत राधा-मोहन कालिंदी के कूल
झूलत राधा-मोहन कालिंदी के कूल।सघन-लता सुहावनी चहुं दिसि फूले फूल॥
नंददास
पिय के पद कंचन-राती
पति संग सघन विपिन को रहिबो सेवत रस मदमाती॥हृदय मानहिं बहु भांति।
रानी रघुवंश कुमारी
अवधपुरी घुमड़ि घटा रही छाय
दादुर मोर पपीहा बोलत दामिनि दमकि दुराय।भूमि निकुंज सघन तरुवर में लता रही लिपटाय॥
प्रताप कुंवरि बाई
गिरिधर कौन प्रकृति तिहारी
गिरिधर कौन प्रकृति तिहारी अटपटी सघन वीथिन में—ब्रजवधू आवति जाति अव मारग में अटको।
गोविंद स्वामी
रंग हिंडोरना मन मोह्यो
जहाँ सघन द्रुम-घटा-घन सौं विद्यु-कंचन वेलि॥कुसुम किसलय सुरंग सुरघन मंद पवन झकोर।
गदाधर भट्ट
सुंदरि तुअ मुख मंगल दाता
तिल एक जघन सघन रब करइत होअल सैनिक भंग॥विद्यापति कवि ई रस गाबए जामुन मीललि गंग॥
विद्यापति
राधा निसि हरि के संग जागी
राधा निसि हरि के संग जागी।जमुना पुलिन सघन कुंजनि में, पिय अंग-अंग मिलि कै अनुरागी॥
छीतस्वामी
सुनि राधा इक बात भली
तहां ले जाऊं मदन मोहन पै मैं देखी इक बंक गली।सघन निकुंज कुसुमनि रचि भूतल आछी विटप अली॥
परमानंद दास
मेरो मन सु पथिक मग भूल पर्यो री
कृपानिवास
मदन गोपाल बलैये ले हौं
परमानंद दास
श्याम ढाक तर मंडल जोर
श्याम ढाक तर मंडल जोर जोर बैठे छाक खात दधि ओदना।सघन कुंज मध्य चंदन के महल में उसीर रावटी चहुं ओर