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बलि-बलि, सखी वृंदा विपिन
बलि-बलि, सखी वृंदा विपिन जुग-चंद-दरसन कीजिए।ललित लखि अरविंद-मुख-रस रूप नैननि पीजिए॥
ललितकिशोरी
पिय के पद कंचन-राती
पति संग सघन विपिन को रहिबो सेवत रस मदमाती॥हृदय मानहिं बहु भांति।
रानी रघुवंश कुमारी
जयति रसिकिनि राधिका
जय ब्रजराज, जमुनजल जय गिरिवर नंदगांव,बरसाने वृंदा विपिन नित्य केलि को धाय।
जुगलप्रिया
कोकिल अब क्यों मौन गही
कोकिल अब क्यों मौन गही?बहु विधि फूल विपिन में फूले मंद समीर बही॥
बालमुकुंद गुप्त
लाल! तुम कैसे चराईं गाइ
लाल! तुम कैसे चराईं गाइ।ग्वालन संग छैया में बैठे, कौन विपिन में जाइ॥
गोस्वामी हरिराय
प्रिय नवरंग गोवर्धनधारी
सुखद सरूप, सुखद हित चितवनि वृंदा विपिन बिहारी।छीतस्वामी सुख सुलभ सुपथ, श्री वल्लभ मत अनुसारी॥
छीतस्वामी
मन तुम मलिनता तजि देहु
विपिन वृंदा वास करु जो सब सुखनि को गेहु।नाम मुख मे ध्यान हिय मे नैन दरसन लेहु॥