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तो सुन हो पंडता मेरी बात
तो निर्गुण ब्रह्म कु तुम नहीं ज्याने,तो काहे बखाने शास्त्र के माने।
केशवस्वामी
प्रीति तो काहूं नहिं कीजै
प्रीति तो काहूं नहिं कीजै।बिछुरै कठिन परै मेरो आली कहौ कैसे करि जीजै॥
परमानंद दास
जो गिरि रुचे तो बसो श्री गोवर्द्धन
नंददास
मैया, मैं तो चंद−खिलौना लैहौं
मैया, मैं तो चंद-खिलौना लैहौं।जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥
सूरदास
मैं तो साँवरे संग खेलन जैहौं
गोपाल
शहंशाह बने हो तो आह सुनो दिनन की
शहंशाह बने हो तो आह सुनो दिनन की,बानी मरदानी बचन जावे खाली है।
निपट निरंजन
यह तो भाग्य पुरुष मेरी माई
यह तो भाग्य पुरुष मेरी माई।मोहन को गोदी में लिये जेमत हैं नंदराई॥
परमानंद दास
अब तो अजपा जपु मन मेरे
अब तो अजपा जपु मन मेरे॥सुर नर असुर टहलुवा जा के, मुनि गंधर्व जा के चेरे॥
मलूकदास
हे री मैं तो प्रेम दिवानी
हे री मैं तो प्रेम दिवानी, मेरा दरद न जाने कोय।सूली ऊपर सेज हमारी, किस बिध सोना होय।
मीरा
तू तो प्रीति की रीति न जानै एरी गँवार
तू तो प्रीति की रीति न जानै एरी गँवार।जाकौ मन मिलाइ चित लीजे जासों और बहीये नार॥
गोविंद स्वामी
राणाजी म्हें तो गोविंद का गुण गास्याँ
राणाजी म्हें तो गोविंद का गुण गास्याँ।चरणामृत को नेम हमारो नित उठ दरसण जास्याँ॥
मीरा
'ब्राह्मण' पत्र की पाठकों से अपील (दो)
आठ मास बीते जजमान, अब तो करो दच्छिना दान।आजु काल्हि जौ रुपया देव, मानी कोटि यज्ञ करि लेव॥
प्रतापनारायण मिश्र
मैं तो खेलूं प्रभु के संग
मैं तो खेलूं प्रभु के संग होरी रंगभरी।जित देखूं तित रम रहौ रे सबमें व्यापक है हरी॥
सहजोबाई
प्रीतम, तुम तो दृगनि बसत हौ
प्रीतम, तुम तो दृगनि बसत हौ।कहा भरोसे ह्वै पूछत हौ, कै चतुराई करि जू हँसत हौ?
चाचा हितवृंदावनदास
ओं आप ही आप आप उपन्ना
काबल सो तो कजिया सारै, अगम अगोचर की बात विचारै।(बात विचारै सांझ सुंवारै) सो जोगी तो कबू न हारै।
जसनाथ
सुरंग दुरंग सोहत पाग लाल कैं
नंददास
प्यारे तू ही ब्रह्मा तू ही विष्नु
प्यारे तू ही ब्रह्मा तू ही विष्नु, तू ही रुद्र तू ही सिव-सक्ति,तू ही सूर्य तू ही गनेस।