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फिर भी हुसेन रवि गाँधी कविता लिख रहा है
फ़िलहाल बिलकुल फ़ुर्सत नहींविश्वास करें, फ़ुर्सत नहीं
हुसेन रवि गाँधी
जियरा साँसत मा परा
जब उमिर ढली होइगें बिमार,मड़ही मा टुटही खाट लेहेन।बेटवन से कहेन कि चेता तौ, सब पारी-पारी डाटि लेहेन।
अनुज नागेंद्र
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन ख़ाँ का एकल तबला वादन सुनते हुए
और यह रहा उठानदेखो-देखो सोचते पहाड़ की-सी गंभीरता
महेश आलोक
बेटियाँ होती ही पराई है…!
हर लड़की को एक दिन दुल्हन बनना पड़ता है।पता नहीं, इस बात से मुझे डर क्यों लगता है...