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मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा?
मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा?स्तब्ध, दग्ध मेरे मरु का तरु
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
कटहल के फूलों को लहरों ने रोका था
होता है, तुम को इस का कुछ भी नहीं पता।’‘बड़ों ने कहा था, बोलो जब कोई पूछे’—
त्रिलोचन
वहाँ कोई न था
धरती के अंदर बहती नदियों का कोई सागर नहीं थाउनके व्यवहार को समझा जाता था समलैंगिक