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कुतुबमीनार के सामने
छुटपन के दिनों में जब भी आता था बाइसकोप वालाउमड़ आता था गलियों में बच्चों का सैलाब
लक्ष्मीकांत मुकुल
माँएँ आत्महत्या क्यों नहीं करतीं?
उनके भ्रूण का लिंग जाँच नहीं होतादाइयाँ उन्हें बदलती नहीं
जुवि शर्मा
कभी न लौटेंगे वे सपने
मैंने तुझे पुकारा, आई किंतु न तू फिर लौट,तू न हुई विचलित, मैंने थे बहुत बहाए अश्रु।
अलेक्सांद्र ब्लोक
जहाँ कभी वली का मज़ार था
सौम्य मालवीय
पर वेश्याओं ने तुम्हें कभी प्यार नहीं किया
उनकी माँएँ, पत्नियाँ, दोस्त, भाई सब थेजिनसे तुमने कभी कोई उम्मीद नहीं की
अंकिता शाम्भवी
पत्नी पूछती है कुछ वैसा ही प्रश्न जो कभी पूछा था माँ ने पिता से
बताइए न, ये लोकतंत्र क्या होता है?अब पिता सतर्क थे
जितेंद्र श्रीवास्तव
जहाँ कभी हूरों का आना-जाना था
उसके पैर जो सागर मंथन में थके नहीं थेकाबा से लौटकर अब गर्म पत्थरों को समतल कर रहे थे,