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नदी नहीं सागर उमड़ा है
नदी नहीं सागर उमड़ा है, हहराता-घहराताकल के सोए हुए नगर को, आधी नींद जगाता
कृष्ण मुरारी पहारिया
नदी रोज़ पूछा करती है
नदी रोज़ पूछा करती है, ऐसे क्यों चल दिए अकेलेवहाँ वही अनजान नगर है यहाँ भावनाओं के मेले
कृष्ण मुरारी पहारिया
नदी को एक दरवाज़ा
यह कोठरी जहाँ मैंने भोगी नहीं विशेष यंत्रणा,जिसकी बीच खिड़की से दीखती है पेड़ों की कटाई,